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प्रवचन-३७
१४८ मुझे दोनों की शादी कर देनी चाहिए। उसने लंका में आकर दोनों की शादी कर दी। __ पुरुष की अपेक्षा से शादी का प्रथम फल है विशुद्ध पत्नी की प्राप्ति का। यदि अखंड कौमार्य व्रतवाली पत्नी मिलती है, गुणवान और शीलवान पत्नी मिलती है तो शादी सफल बनती है। गर्भवती स्त्री गर्भ का ध्यान रखे :
ऐसी पत्नी प्राप्त होने का फल है अच्छे संतानों की प्राप्ति। यदि माता सशील, संयमी और संस्कारी होगी तो उनकी संतान प्रायः सुशील, संयमी और संस्कारी ही पैदा होगी। जब से स्त्री गर्भवती बनेगी तभी से वह सावधान हो जायेगी। उसको मालूम हो जायेगा कि 'मैं माता बननेवाली हूँ...' तभी से वह अपने समग्र जीवन में परिवर्तन कर देगी। पेट में रहे हुए जीव को किसी प्रकार की शारीरिक और मानसिक पीड़ा न हो, किसी प्रकार के कुसंस्कार उस पर न पड़ें; इसलिए वह सजग बन जाती है। वह अपने आनन्द-प्रमोद
और सुखभोग को छोड़कर गर्भस्थ जीव की सुख-शाता का विचार करती है। वह जानती है कि मेरी मन-वचन-काया की हर एक प्रवृत्ति का असर सूक्ष्म रूप से गर्भस्थ जीव पर पड़ेगा ही। उस पर कोई बुरा असर न पड़ें इसलिए वह अपने विचारों को भी पवित्र रखने का प्रयत्न करती है | गर्भस्थ बच्चे का असर माँ के मन पर :
ऐसा भी बनता है कि गर्भ में आनेवाला जीव पवित्र आत्मा होती है, महान होनेवाला होता है तो माता को अच्छे स्वप्न आते हैं! इसका अर्थ यह होता है कि गर्भस्थ जीव के अच्छे-बुरे कर्मों का प्रभाव माता के विचारों पर पड़ता है | परन्तु जाग्रत माता समझ लेती है कि मेरे पेट में कैसा जीव आया है। उसका प्रयत्न तो वही रहता है कि सन्तान सुशील और सदाचारी बने। सन्तान निरोगी और स्वस्थ बनी रहे | उसकी पाँचों इन्द्रियाँ परिपूर्ण हों। यदि माता का यह लक्ष्य नहीं हो तो संभव है कि माता की दुष्प्रवृत्तियों से सन्तान रोगी, अस्वस्थ और क्षतियुक्त इन्द्रियोंवाली जन्मे! गर्भवती स्त्री की वृत्ति-प्रवृत्ति का असर बच्चों पर :
जो गर्भवती स्त्री रेडियो, रेकार्ड वगैरह सुनती रहती है उसका बच्चा बहरा जन्मता है। जो स्त्री दिनभर सिनेमा, नाटक, सरकस, टी.वी. विडियो वगैरह
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