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प्रवचन- ३७
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है ? यदि मनुष्य स्वयं जाग्रत हो, स्वयं आत्मज्ञानी बनें और इन बुराइयों से बचना चाहे तो ही बच सकता है, अन्यथा नहीं । स्त्री के लिए गर्भस्थ जीव का पालन करना बड़ा धर्म है । यदि धर्मपालन करें तो अच्छी संतान, अच्छी प्रजा पैदा हो सकती है ।
सात्त्विक और संस्कारी प्रजा कब पैदा होगी ?
ध्यान रखना, मोक्षमार्ग की आराधना सात्त्विक प्रकृति की प्रजा ही कर सकती है। सात्त्विक प्रजा की उत्पत्ति सुशील, संस्कारी और करुणामयी महिलाएँ ही कर सकती हैं। रजोगुणी और तमोगुणी महिलाओं की प्रजा भी रजोगुणी और तमोगुणी होगी । ऐसी प्रजा मोक्षमार्ग का अनुसरण नहीं कर सकती, आत्मतत्त्व की उपलब्धि नहीं कर सकती ।
अच्छी प्रजा के लिए, सात्त्विक प्रजा के लिए महिलाएँ भी सात्त्विक चाहिए। पुरुष भी सात्त्विक चाहिए। मात्र शारीरिक सुख पाने की दृष्टि से शादी का मार्ग नहीं बताया गया है। वह सुख तो बिना शादी किये भी मनुष्य पा सकता है। शादी का प्रयोजन सात्त्विक प्रजा की उत्पत्ति का है । सात्त्विक का अर्थ शक्तिशाली नहीं है, सात्त्विक का अर्थ है सुशील, सहनशील, स्थिर, धीर और वीर। ऐसी प्रजा कष्टभरपूर धर्मपुरुषार्थ करने में समर्थ होती है। ऐसी प्रजा ही आत्मा को अनंत कठोर कर्मों के बंधनों से मुक्त कराने में समर्थ होती है। निःसत्त्व, कायर और कष्टभीरु प्रजा धर्मपुरुषार्थ तो नहीं, अपने राष्ट्र की रक्षा करने भी समर्थ नहीं होती है ।
अत्यंत विलासिता मनुष्य को निःसत्त्व, कायर, अस्थिर और चंचल बना देती है। आज के मनुष्य की स्थिति देखो । विलासिता में मनुष्य डूब रहा है। शादी के आदर्शों को भूल गया है । आत्मदृष्टि ही नहीं रही है। मात्र भोगदृष्टि और भोग-उपभोग की सृष्टि में भटकना ! प्रजा निर्वीर्य और निःसत्त्व पैदा हो रही है। शुरूआत स्वयं से होगी :
यदि पूरा देश नहीं, प्रान्त नहीं, एक जैन समाज भी इन आदर्शों को सजीवन करें और ज्ञानी पुरुषों के मार्गदर्शन अनुसार जीवन-पद्धति बना दें तो उनका तो आत्मकल्याण होगा ही, देश का भी भला होगा। दूसरी प्रजा को एक भव्य आदर्श मिलेगा । चाहते हो आप लोग वैसा भव्य आदर्श प्रस्थापित करना? आप लोगों से क्या मैं आशा कर सकता हूँ? यदि आप लोग आशा
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