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प्रवचन-३६
१४५ 5. वैदिक परंपरा में शादी-विवाह के आठ प्रकार बतलाये गये हैं...
आज के परिवेश में वे सब ज्यों के त्यों प्रस्तुत नहीं हो सकते! . स्त्री को गर्भावस्था के दौरान गर्भ की बड़ी अच्छी तरह देखभाल
करनी चाहिए। स्त्री की तमाम वृत्ति या प्रवृत्ति का असर कम या ज्यादा अंश में पेट में रहे हुए बच्चे पर अवश्य पड़ता है। . अपन जो कुछ भी देखते हैं, सुनते हैं या पढ़ते हैं, सोचते
हैं... उन सबका असर अपने पूरे व्यक्तित्व पर होता है! . संस्कारी एवं स्नेहभरा परिवार यह तो सबसे ज्यादा कीमती
चीज है। परिवार यदि प्रेमसभर, समझदार और सुव्यवस्थित होगा तो आपकी धर्मआराधना निरापद एवं आनंदभरी
बनी रहेगी! . घर को नौकरों के भरोसे और बच्चों को नौकरानी के
भरोसे छोड़ दोगे तब फिर संस्कार आयेंगे कहाँ से?
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प्रवचन : ३७
महान श्रुतधर, पूज्य आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी द्वारा विरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ के माध्यम से गृहस्थ के सामान्य धर्म के विषय में अपनी विवेचना चल रही है। शादी-विवाह में औचित्य का पालन, दूसरा सामान्य धर्म है। शादी के विषय में ग्रन्थकार ने काफी स्पष्ट, तर्कसंगत और सर्वांगीण मार्गदर्शन दिया। अब टीकाकार आचार्यश्री इसी संदर्भ में कुछ विशेष बातें बताते हैं। _ विवाह की परिभाषा करते हुए उन्होंने बताया कि 'युक्तितो वरणविधानम् अग्निदेवादिसाक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाहः।' कुल-शीलादि की जाँच करना युक्ति है, उस युक्ति से पसन्द कर, अग्नि और देव वगैरह की साक्षी से वर कन्या का पाणिग्रहण करें, उसको विवाह कहते हैं। यह परिभाषा वैदिक परम्परा की है। जैन-परम्परा को भी यह परिभाषा अमान्य नहीं है।
प्राचीन भारत में कोई एक प्रकार की विवाह-पद्धति नहीं थी, यहाँ पर टीकाकार आचार्यश्री ने अन्य वैदिक परंपरा के शास्त्रों से उद्धृत करके आठ प्रकार की विवाह-पद्धतियाँ बतायी हैं। संक्षेप में आठों प्रकार के विवाह की पद्धतियाँ बताता हूँ|
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