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प्रवचन-३६
१३८ है। शीघ्र ही युवक को अपने पास बुलाकर कह दिया : 'तुम पाँच बजे ऑफिस से छुट्टी ले लेना, भोजन कर लेना।' युवक ने कहा कि 'ऑफिस का मेरा काम पाँच बजे पूरा नहीं होता है, अधूरा काम छोड़कर कैसे जाऊँगा? आप चिन्ता नहीं करें, मुझे शाम को भोजन करने की आदत नहीं है... मैं ऑफिस का अपनाकाम पूरा करके ही जाऊँगा।'
सेठ ने कहा : 'ऑफिस का काम अधूरा रहे तो दूसरे दिन आकर करना, परन्तु मेरे यहाँ रहनेवाला व्यक्ति एक समय भी भूखा रहे, वह मैं नहीं चाहता।'
युवक ने कहा : 'आपकी कृपा है, आप उदार हृदय के हैं, इसलिए आप मुझे पाँच बजे छुट्टी देते हैं। परन्तु मैं जो आपसे तनख्वाह लेता हूँ वह तो पूरे समय की लेता हूँ.... तो काम भी मुझे पूरे समय का करना चाहिए। मेरे धर्म ने मुझे सिखाया है कि अनीति का धन नहीं लेना। यह अनीति होगी.... रुपये पूरे समय के लेने और काम अधूरा करना.... आप मुझे क्षमा करें, मैं शाम को सात बजे ही जाऊँगा।'
सेठ तो युवक की नीतिमत्ता से इतने प्रभावित हो गये कि शाम का अपना भोजन उन्होंने ऑफिस में मँगवाना शुरू किया और उस युवक को अपने साथ भोजन कराने लगे।
धीरे-धीरे यह युवक सारे बाजार में प्रिय बन गया। सेठ ने उसको धंधे में अपना साझी बनाया... और जब सेठ ने व्यापार से निवृत्ति ले ली तब इस युवक को शेअर बाजार की अपनी ऑफिस दे दी। इस युवक ने लाखों रूपये कमाये । आज तो वह युवक वृद्ध बन गया है और उसने भी व्यापार से निवृत्ति ले ली है। धर्मक्षेत्र में भी उसकी आज अच्छी लोकप्रियता है। लोकप्रियता ने उसको सम्पत्ति दी और प्रतिष्ठा भी दी।
आप कहेंगे कि 'पुण्य का उदय होता है तो संपत्ति मिलती है। परन्तु पुण्य को उदय में लाने के रास्ते आप जानते हो? सदाचरण से पुण्य उदय में आता है। परोपकार के कार्यों से पुण्य उदय में आता है। दुराचरण से पुण्य उदय में नहीं आता। कभी तत्काल आपको पुण्य उदय में आता हुआ दिखता होगा, परन्तु वह पुण्योदय क्षणिक होता है। दुष्ट और अधम कार्य करनेवालों के पुण्योदय नष्ट होते आपने नहीं देखे क्या? इसलिए कहते हैं ज्ञानी पुरुष कि दुराचरण छोड़ो और सदाचारों का पालन करो। जनप्रिय बने रहो, जनप्रिय व्यक्ति से ही शादी-संबंध करो। इससे आपकी इज्जत बढ़ेगी, प्रतिष्ठा बढ़ेगी और सम्पत्ति भी बढ़ेगी। ये सब सुख के साधनों का धर्मपुरुषार्थ में उपयोग करना होगा।
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