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प्रवचन-३६
___ १३६ परोपकारी कार्यों से, उच्चतम बलिदानों से समाज में 'कुलवान्' की प्रतिष्ठा जम गई होती है....परन्तु अज्ञानी, लोभी एवं मायावी पुरुष अपने कुल की प्रतिष्ठा को नहीं देखते, वे तो रूप अथवा रुपये के लिए बुरे से बुरे काम करेंगे। वैसे, शीलवान् का अर्थ इतना ही है कि वह मांस-भक्षण नहीं करता हो, मद्यपान नहीं करता हो, रात्रिभोजन नहीं करता हो। खाने-पीने की इतनी परहेज करनेवाले लोग भी जब लोभदशा में अन्ध बनते हैं तब करचोरी, तस्करसहायता, अवैध व्यापार जैसे दुष्कर्म करते हैं, ऐसा देखने में आता है। इसलिए ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि कुल-शीलादि की समानता होने पर भी, यदि व्यक्ति गलत कार्यों में संलग्न है और लोगों की दृष्टि में गिरा हुआ है तो उससे शादी नहीं करनी चाहिए। यदि आप अपनी उज्ज्वल प्रतिष्ठा बनाये रखना चाहते हो तो यह बात है। सद्गुरुओं का परिचय पापों से बचायेगा :
सभा में से : आज तो हम लोग सभी छोटे-बड़े अपराधों में फंसे हुए हैं। भाग्य से कोई बचा हुआ हो! 'करचोरी और स्मगलिंग' तो बहुत व्यापक बन गया है। ___ महाराजश्री : तब तो कोई बात नहीं। चोरों की चोरों से समानता हो जायेगी! यदि समाज इतना गिरा हुआ है तो मोक्षमार्ग की आराधना कहाँ देखने मिलेगी? यदि सदगुरुओं के परिचय में रहनेवाले और उनका धर्मोपदेश सुनने वालों की भी यह शोचनीय दशा हो जाय... तो दूसरों की निन्दा कैसे करें? दूसरों के दोष कैसे देखें? वास्तव में देखा जाय तो आप लोगों को सद्गुरु का परिचय ही नहीं हुआ है! धर्मोपदेश सुनते हुए भी नहीं सुनते! सद्गुरु का परिचय आपके पापोंका नाश किये बिना नहीं रहे! आपके दुराचरणों को मिटाये बिना नहीं रहे। होना चाहिए सही अर्थ में परिचय। ___ सद्गुरु का नाम जानना और काम जानना इतना ही परिचय नहीं है। सद्गुरु की सेवा-भक्ति और पूजा कर लेना ही परिचय नहीं है.... सद्गुरु के उपदेश से दो रूपये खर्च कर देना मात्र ही परिचय नहीं है। परिचय इन सब बातों से ऊपर की भावनात्मक बात है। सद्गुरु का परिचय उनके निष्पाप जीवन का परिचय है। उनकी ज्ञानदृष्टि का परिचय है। उनकी निःस्वार्थवृत्ति और करुणा का परिचय है। किया है सदगुरु का ऐसा परिचय? ऐसा परिचय होने पर डाकू भी साधु बन गये! ऐसे परिचय के अभाव में श्रावक भी डाकू जैसे बन गये।
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