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प्रवचन- ३६
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टीकाकार आचार्यश्री मुनिचन्द्रसूरिजी ने प्रस्तुत में जैनेतर विचारधारा को भी बताया है यानी वैदिक परम्परा के शास्त्र शादी-विवाह के विषय में क्या मार्गदर्शन देते हैं, वह भी बताया है ।
शादी की उम्र : स्त्री १२ बरस की, पुरुष १६ बरस का :
वैदिक परम्परा के शास्त्रों में सर्वप्रथम वयमर्यादा बतायी गई है। स्त्री की बारह वर्ष और पुरुष की सोलह वर्ष की उम्र शादीयोग्य बतायी है। वर्तमानकाल में यह उम्र शादी योग्य नहीं मानी गई है। शादी के आदर्शों में ही अन्तर पड़ गया है। किसी भी परम्परा के धर्मग्रन्थ आत्मविकास और आत्मविशुद्धि की दृष्टि से हर बात में मार्गदर्शन देते हैं, जबकि सामाजिक विचारधारा में 'आत्मतत्त्व' को स्थान नहीं होता है। सामाजिक शास्त्र और मनोविज्ञान, मनुष्य की शारीरिक और मानसिक, आर्थिक और भौतिक परिस्थिति को ही लक्ष्य में लेता है।
ऋषि-मुनियों ने अपनी ज्ञानदृष्टि में, स्त्री को बारह वर्ष की उम्र में शादी योग्य देखी होगी। बारह वर्ष की लड़की में इतनी जातीय वासना..... कामभोग की वासना जाग्रत होती हुई देखी होगी, यदि उसकी वह भोगवासना संतुष्ट न हो तो संभव है कि वह किसी भी पुरुष से संभोग कर अपने शील का भंग कर दे। जब तक उसकी शादी न हो, वह अनेक पुरुषों से संभोग कर, भोगासक्त बनकर धर्मआराधना से वंचित रहेगी, चरित्रभ्रष्ट होकर जीवन को बरबाद कर देगी। सामाजिक विचारधारा ऐसी बनी हुई है कि कौमार्यव्रत अखण्ड रहना चाहिए। शादी से पूर्व स्त्री या पुरुष को मैथुन से दूर रहना चाहिए, यानी स्त्री-पुरुष की संभोगक्रिया नहीं होनी चाहिए । जो स्त्री-पुरुष शादी से पूर्व मैथुनसेवन करते हैं, समाज की दृष्टि में हीन - पापी माने जाते हैं। लोग उनकी ओर घृणा की दृष्टि से देखते हैं।
शादी से पूर्व, जो लड़की अपनी कामवासना पर संयम नहीं रख पाती वह स्त्री छिप कर भी किसी पुरुष से मैथुनसेवन कर ही लेगी। यदि समाज को उसका दुराचरण मालूम हो गया तो फिर उस लड़की से कोई शादी करने को तैयार नहीं होता। शादी से पूर्व यदि लड़की किसी पुरुष के संभोग से गर्भवती हो गई तो उस पर बड़ी आपत्ति आ जाती है।
सभा में से : अब कुमारिकाओं को यह भय नहीं रहा है। सरकार ने संतति-नियमन के साधन उपलब्ध करा दिये हैं.... जिसके उपयोग से स्त्री गर्भवती नहीं बनती ।
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