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प्रवचन-३५
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शादी में भी आदर संयम का : __सामान्य धर्म के ३५ प्रकार बताये गये हैं। इनमें पहला धर्म, न्यायसम्पन्न वैभव का आपको बताया। दूसरा धर्म है समान कुल, शीलवालों के साथ विवाह | यदि आप संपूर्ण ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन नहीं कर सकते हो तो आपको शादी करनी पड़ेगी, शादी करना वह धर्म नहीं है, शादी में औचित्य का पालन और ज्ञानी पुरुषों की आज्ञा का पालन करो, वह धर्म है। धर्मपुरुषार्थ का ध्येय, वह धर्म है। शादी करते समय भी आपका ध्येय तो मोक्षमार्ग की आराधना का ही होना चाहिए। शादी करके भी विषयोपभोग में डूब जाना नहीं है, भोगविलास में लीन हो जाना नहीं है। क्रिया भले मैथुन की हो, लक्ष्य ब्रह्मचर्य का रखना है। 'कब मैं अपनी विषय-वासना पर संपूर्ण संयम कर सकूँ और कब ब्रह्मचर्य का पालन करूँ...' यह विचार बना रहना चाहिए।
जिस व्यक्ति से शादी करना हो उनमें पाँच बातों की समानता देखने की है। कुल-वंश की, शील की, वैभव की, वेश की और भाषा की। यदि इन पाँच बातों की विषमता रही तो जीवन विषमताओं से भर जायेगा। क्लेश, संताप और अशान्ति के शिकार बन जाओगे। वेश की समानता :
जिस प्रदेश में आप रहते हो, जिस समाज में आप रहते हो, जिस परिवार में आपको जीना है, उसके अनुरूप वेश-भूषा होनी चाहिए | हालाँकि आजकल वेश-भूषा के विषय में तो कोई नियम या मर्यादाएँ रही ही नहीं हैं, सामाजिक बंधन भी नहीं रहे हैं। जिसको जो वेश पसन्द आता है, पहनता है! गुजराती महाराष्ट्रियन वेश भी पहन सकता है और पंजाबी वेश-भूषा भी धारण कर सकता है! राजस्थानी सिन्धी या पंजाबी वेश पहन सकता है | पंजाबी गुजराती या राजस्थानी....मनचाहा वेश धारण कर लेता है। अंग्रेजी वेश-भूषा तो देशव्यापी ही नहीं, विश्वव्यापी बन गई है।
वेश-भूषा में, अपनी संस्कृति के अनुसार जो पारिवारिक और सामाजिक मर्यादाओं का लक्ष्य रखने का था, वह अब नहीं रहा। शारीरिक स्वास्थ्य का लक्ष भी नहीं रहा। शारीरिक सुविधा का लक्ष्य भी नहीं रहा। लक्ष्य हो गया है मात्र सौंदर्य का, फैशन का और फिल्मी अनुकरण का। वेश-परिधान में मनुष्य ऐसा मूढ हो गया है कि 'ऐसा वेश पहनने से मैं अच्छा लगता हूँ या भद्दा....' यह भी सोच नहीं सकता है।
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