________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन- ३४
१२०
हुआ यह संसार है। विषमताओं में समानता पाना कितना मुश्किल काम है ?
हालाँकि आप लोग वैभव की समानता तो देखते होंगे ? समानता देखते हो कि अधिकता ? यदि धन-संपत्ति के माध्यम से लड़के-लड़कियों की पसन्दगी करते होंगे तो धन की अधिकता ही देखते होंगे? भोगदृष्टिवाले जीवों की पसन्दगी का माध्यम तो रूप और रूपया ही होता है। धर्मपुरुषार्थ की दृष्टि से यदि पसन्दगी हो, तो कुल - शील- वैभव वगैरह की समानता देखने का प्रयत्न होगा।
सभा में से : पसन्दगी बराबर करने पर भी सुख - दुःख का आधार तो शुभाशुभ कर्म ही मानने पड़ेंगे न?
महाराजश्री : शुभाशुभ कर्म तो प्रधान कारण है ही, परन्तु यदि समुचित पसंदगी होती है तो इतना आश्वासन रहता कि पसन्दगी में तो भूल नहीं हुई है, हो सके इतना प्रयत्न कर लिया है.... फिर भी अच्छा परिणाम नहीं आया, तो अशुभ कर्म का उदय ही कारण है।' दूसरी बात : 'शुभाशुभ कर्म के उदय से सुख-दुःख आते हैं,' इस सिद्धान्त की श्रद्धा होने से, दुःखों को समता भाव से सहन करने की शक्ति मिलती है।
पहले ज्ञानी पुरुषों के मार्गदर्शन अनुसार पुरुषार्थ करना चाहिए। वैसा पुरुषार्थ करने पर भी सानुकूल परिणाम नहीं आता है तो अशुभ कर्म का उदय मानकर समताभाव बनाये रखना है। पहले से ही कर्म के सहारे सब छोड़कर पुरुषार्थ नहीं किया तो बड़ी भूल होगी । ऐसी भूल नहीं करना ।
आज, शादी-विवाह के विषय में तीन बातों की समानता के विषय में विवेचन किया, शेष दो बातों की समानता के विषय में आगे विवेचन करेंगे। आज, बस इतना ही ।
For Private And Personal Use Only