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प्रवचन-३५
१३० होता तो मोक्ष में जाने की मैं बात ही नहीं करता! मात्र एक ही जगह है कि जहाँ एक भी विषमता नहीं है, वह है मोक्ष! __ मोक्षमार्ग है सम्यकदर्शन-ज्ञान और चारित्र्य का। उस मार्ग पर चलने की सच्ची भावना को हृदय में सलामत रखना। आज उस मार्ग पर चलने की शक्ति न हो और संसार में रहना पड़े तो भी संसार के भ्रामक जाल में फँसना मत | शादी करनी हो तो भी संभल के करना! यदि अज्ञान दशा में कुपात्र से शादी हो गई हो तो अब कुपात्र को सुपात्र बनाने का प्रयत्न करना! सुपात्र नहीं बने तो त्याग करके हमारे पास आ जाना! रुचि की समानता :
एक-दूसरे की रुचि-अभिरुचि की समानता बहुत जरूरी है। जो पति की रुचि वही पत्नी की रुचि। जो पत्नी की रुचि वही पति की रुचि! तो शान्ति रहेगी, प्रसन्नता रहेगी। रुचि की भिन्नता तो बड़ा अनर्थ कर देती है। पति की सिनेमा देखने की रुचि है.... पत्नी की सिनेमा देखने की अरुचि है; पति की गार्डन में घूमने की रुचि है, पत्नी को घूमने जाने की ही अरुचि है | पति को तीर्थयात्रा करना पसन्द है, पत्नी को कश्मीर का सफर करना पसन्द है.... फिर देखना तमाशा! एक-दूसरे की अभिरुचि एक-दूसरे पर थोपने का प्रयत्न होगा, एक-दूसरे का विरोध करेगा! फिर क्लेश झगड़ा और मनमुटाव का विषचक्र शुरू हो जायेगा। पति-पत्नी की अभिरुचियाँ, उनके 'चॉईस' यदि भिन्न होते हैं तो प्रतिदिन दोनों परेशान रहते हैं। __ पति को सम्पत्ति का प्रदर्शन प्रिय हो और पत्नी सादगी पसन्द हो तो संघर्ष! पति को बढ़िया खाना-पीना प्रिय हो और पत्नी को तपश्चर्या प्रिय हो तो संघर्ष! पति को मंदिर-उपाश्रय में जाना पसन्द हो और पत्नी को सिनेमा...नाटक और सर्कस देखना पसन्द हो तो संघर्ष! इसलिए कहता हूँ कि रुचि की समानता देखो। ___ हाँ, आप मनोवैज्ञानिक हैं और भिन्न रुचिवाली पत्नी को आपकी रुचि के अनुसार बना सकते हैं तो कोई चिन्ता नहीं, परन्तु है आपके पास मनोविज्ञान का ज्ञान? दूसरों को अपनी अभिरुचिवाला कैसे बनाया जाये, उसकी शिक्षा पायी है क्या? ध्यान रखना, गालियाँ बकने से या चिल्लाने से दूसरों का जीवन-परिवर्तन या रुचि-परिवर्तन नहीं कर सकोगे। सजा करने से या मारने से दूसरों की अभिरुचियाँ नहीं बदल सकोगे।
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