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प्रवचन-३५
१३३ H.पहले के जमाने में सामाजिक व्यवस्था में विनय और मर्यादा, -
औचित्य एवं जिम्मेदारी का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान था। . आज का सामाजिक जीवन तो इतना विकृत हुआ जा रहा ।
है कि जिसकी चर्चा करने में भी शरम महसूस होती है! .आजकल मर्यादाएँ तो मरने पड़ी हैं... औचित्य-विवेक जैसे -
कि कहीं खो गये हैं। • अच्छे संबंधों को देखो, कभी भी तोड़ मत देना! अच्छे
संबंधों का सेतु बड़ी कठिनाई से बनता है! उस संबंध की कीमत समझकर उसे बचाये रखने की कोशिश करना। . सद्गुरुजनों का परिचय सच्चा करना होगा! उनका ज्ञान, उनकी करुणा, उनका वात्सल्य-इन सबका परिचय यही सच्चा परिचय है। लोकप्रियता-जनप्रियता यह तो लाखों की दौलत प्राप्त करने का तरीका है। सभी के दिल में जगह कर लेना कोई सरल बात नहीं है।
प्रवचन : ३६
महान श्रुतधर, १४४४ धर्मग्रन्थों के रचयिता आचार्यदेव श्री हरिभद्रसूरिजी ने स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थ के सामान्य धर्म का निरूपण करते हुए दूसरा सामान्य धर्म बताया है शादी-विवाह के औचित्य का।
समान कुल और समान शील वगैरह वाले स्त्री-पुरुष के बीच शादी हो तो पति-पत्नी के जीवन में संवादिता रह सकती है और परिवार का धर्मपुरुषार्थ उल्लास से संपन्न हो सकता है। ये सारी बातें विस्तार से आपको बताई गई हैं। आज ये बातें बतानी हैं कि किस किस प्रकार के परिवारों के साथ शादी का संबंध नहीं जोड़ना चाहिए। पारस्परिक एवं पारंपरिक मर्यादा की आवश्यकता :
ग्रन्थकार आचार्यश्री कहते हैं कि समान गोत्रवाले परिवार के साथ शादी नहीं करनी चाहिए। समान गोत्र की परिभाषा करते हुए टीकाकार आचार्य देव श्री मुनिचन्द्रसूरिजी कहते हैं : एक पुरुष की परम्परा को समान गोत्र कहते हैं। जैसे एक पुरुष के चार लड़के हैं, चारों के घर में चार-चार लड़के हुए उनके
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