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प्रवचन-३५
१२७ मनमुटाव नहीं होना चाहिए, जिस प्रकार वैभव-संपत्ति के निमित्त क्लेश नहीं होना चाहिए; वैसे वेश-भूषा के कारण आपस में टकराव नहीं होना चाहिए। भाषा की समानता :
पति-पत्नी के बीच भाषा की समानता होना भी अत्यन्त आवश्यक होता है। भाषा की विषमता कभी बहुत बड़ी गलतफहमी पैदा कर सकती है। मान लो कि आप गुजराती हैं, आपके लड़के को पंजाब की लड़की से शादी करना है। लड़की पंजाबी भाषा बोलती है अथवा हिन्दी भाषा बोलती है, लड़के को पंजाबी भाषा का या हिन्दी भाषा का पूरा ज्ञान होना चाहिए और लड़की को गुजराती भाषा का ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए। क्योंकि लड़का तो हिन्दी या पंजाबी भाषा जानता है, परन्तु लड़के के माता-पिता और भाई-बहन नहीं जानते हैं, तो पुत्रवधू का उन लोगों के साथ बोलना मुश्किल बन जायेगा। सास-ससुर वगैरह भी पुत्रवधू से बात नहीं कर सकेंगे। पुत्र और पुत्रवधू कोई बात पंजाबी भाषा में करते होंगे तब लड़के के माता-पिता शंका की दृष्टि से देख सकते हैं! 'ये दोनों क्या बात करते होंगे? अपने से विरुद्ध तो कोई बात नहीं करते होंगे?' वे लोग लड़के के साथ संघर्ष में आ सकते हैं।
कम से कम, पत्नी जितनी भाषाएँ जानती हो उतनी भाषाओं का ज्ञान पति को होना चाहिए ही। पत्नी पंजाबी भाषा जानती है और पति नहीं जानता है, कोई समय किसी पंजाबी पुरूष से पत्नी पंजाबी भाषा में बात करती है, पति भाषा नहीं जानता है तो उसके मन में शंका होगी : 'इसने पंजाबी भाषा में उस पुरुष के साथ क्या बात की होगी? कोई प्रेम की बातें तो नहीं की होगी?' यों भी मनुष्य का मन शंकाशील तो होता ही है! पति को पत्नी के विषय में जल्दी शंका आ जाती है।
समान भाषा में, समान मातृभाषा में बात करने का आनन्द विशेष होता है बनिस्बत् दूसरी भाषा में। पति-पत्नी दोनों की मातृभाषा एक हो और उस भाषा में वे बातें करेंगे तो एक-दूसरे की बात समझने में सरलता रहेगी। दूसरी भाषा में उतनी सरलता नहीं रहती है। स्नेही-स्वजनों के साथ और मित्रवर्ग के साथ भी वार्तालाप में और व्यवहार में सरलता रहती है। भिन्न भाषावालों के साथ, उनकी भाषा में बात करने पर भी कभी समझने-समझाने में दिक्कत पैदा होती है। इसलिए शादी से पूर्व भाषा की समानता का भी लक्ष्य रखना आवश्यक है।
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