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प्रवचन- ३३
१०७
क्षुधातुर और अत्यन्त कामातुर मनुष्य में विवेक टिक ही नहीं सकता । उसको तो अपना विषय चाहिए ! उस विषय का भोग - उपभोग चाहिए ! विषय कैसा भी हो! भक्ष्य हो या अभक्ष्य, गम्य हो या अगम्य ! जीवात्मा की मनोवृत्तियों को देखकर, जानकर पूर्णज्ञानी महापुरुषों ने धर्मपुरुषार्थ का मार्ग बताया है। जिस प्रकार ब्रह्मचर्य का मार्ग बताया उस प्रकार शादी का भी मार्ग बताया । गृहस्थधर्म बताया। यदि आप सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करने में समर्थ नहीं हो तो आप शादी कर, उसी व्यक्ति से आपकी कामेच्छा को शान्त करो, स्वपत्नी में ही संतोष करो । जो तुम्हारी पत्नी नहीं है, जो तुम्हारा पति नहीं है, उसकी कभी इच्छा भी मत करो । यह है गृहस्थधर्म |
शादी-विवाह किससे करना, कैसे करना, ये बातें बतानी हैं; परन्तु इसके पहले एक और बात बता दूँ : कामेच्छा .... भोगेच्छा होना स्वाभाविक है परन्तु उस इच्छा को प्रबल मत होने देना । यदि प्रबल भोगेच्छा हो तो उसको 'नोर्मल' बनाने का प्रयत्न करना । इच्छा 'नोर्मल' हो सकती है। यदि भोगेच्छा प्रबल बनी रही तो संभव है कि आप व्यभिचार के मार्ग पर चले जाओगे । परस्त्रीगामी बन जाओगे, वेश्यागामी बन जाओगे। यदि इस गलत रास्ते पर चले गये तो जीवन बरबाद हो जायेगा। जीवन में से धर्म तो चला जायेगा, नैतिकता भी नष्ट हो जायेगी । परस्त्रीगामी और वेश्यगामी पुरुष कभी भी किसी धर्मआराधना में स्थिर नहीं बन सकता । मानो कि वह मन्दिर में भी जायेगा, तो भी वहाँ पर वह स्थिरता नहीं पायेगा, उसका मन चंचल ही बना रहेगा। वह उपाश्रय में प्रवचन सुनने आयेगा तो भी उसका मन तो वेश्याओं में ही भटकता रहेगा ।
यदि आप अच्छा गृहस्थजीवन जीना चाहते हो, प्रतिष्ठित सामाजिक जीवन चाहते हो, सुखी पारिवारिक जीवन चाहते हो तो आपको तीव्र भोगेच्छा को शान्त करना ही पड़ेगा । भोगेच्छा में से तीव्रता दूर करनी पड़ेगी।
सभा में से : भोगेच्छा तीव्र नहीं हो, परन्तु घर की स्त्री भी पुरुष को यदि सन्तोष नहीं देती है तो पुरुष परस्त्रीगामी अथवा वेश्यागामी बन जाते हैं, ऐसे उदाहरण देखने में आते हैं।
महाराजश्री : सम्भव है, आपकी बात संभवित है, इसलिए तो ज्ञानी पुरुषों ने, कैसी स्त्री के साथ शादी करनी चाहिए, इस विषय में स्पष्ट और सुचारू मार्गदर्शन दिया है। आप लोगों ने वह मार्गदर्शन लेकर शादी की है न?
सभा में से : ऐसा मार्गदर्शन हमको किसी ने आज तक नहीं दिया है।
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