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प्रवचन-३४
___ ११६ करनी है, लड़की स्वयं पसन्दगी करती है, तो लड़की को समझा देना, गंभीरता से समझा देना कि 'सोच-विचार करके उससे शादी का निर्णय करना । 'प्राइवेट' जाँच करना कि वह शराब तो नहीं पीता है न? मांसाहार तो नहीं करता है न? यदि करता है वह मद्यपान और मांसाहार, तो उसके साथ शादी मत कर, यदि कर ली शादी तो बाद में पछतायेगी। तेरा जीवन नष्ट हो जायेगा | वह तुझे सुखी नहीं करेगा, दुःखी करेगा। वह तुझे शराब पीने को कहेगा, तू शराब पियेगी क्या? वह तुझे उसके साथ अंडा खाने को कहेगा, तू खायेगी क्या?'
इस प्रकार आप लड़कियों को सावधान तो कर सकते हो न? वह मानती है तो अच्छा है, नहीं मानती है तो उसकी बात वह जाने । संभवित है कि रागदशा में, विकारपरवश अवस्था में जीवात्मा सच्ची और अच्छी बात नहीं मानता है। ठीक है, मानना न मानना उसकी मर्जी, अपना कर्तव्य है सही रास्ता बताने का!
शील की समानता विवाहित-जीवन में अति आवश्यक है। स्त्री-पुरुष दोनों के जीवन में मांसाहार और मद्यपान का त्याग होना चाहिए। तीसरा शील है रात्रिभोजन का त्याग। रात्रिभोजन का पाप :
रात्रिभोजन भी बड़ा पाप है, यह बात जानते हो? रात्रिभोजन का निषेध मात्र जैन धर्म में ही है ऐसा नहीं, वैदिक धर्म में भी रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। धर्मशास्त्र और धर्मगुरु भले ही निषेध करें लेकिन क्या आप लोग रात्रिभोजन का त्याग करोगे? 'रात्रिभोजन करना बड़ा पाप है, इतनी बात गंभीरता से मानोगे? किस घर में रात्रिभोजन नहीं होता है? रात्रिभोजन नहीं होता हो ऐसे घर कितने प्रतिशत मिलेंगे आपके समाज में? जैन-समाज के सभी संप्रदायों के, सभी गच्छों के सभी साधु-साध्वी रात्रिभोजन के त्यागी हैं। एक भी साधु या साध्वी रात्रिभोजन करनेवाले नहीं मिलेंगे। ऐसे जैनसमाज के गृहस्थ परिवारों में रात्रिभोजन इतना व्यापक क्यों हो गया?
प्रस्तुत में तो है शील की समानता की बात, यानी स्त्री-पुरुष दोनों रात्रिभोजन के त्यागी होने चाहिए! बात बिल्कुल विपरीत है.... स्त्री-पुरुष दोनों रात्रिभोजन करते हैं! यह शील की नहीं, दुःशील की समानता हो गई! यदि लड़की रात्रिभोजन की त्यागी है तो उसकी शादी रात्रिभोजन के त्यागी
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