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प्रवचन-३४
___११७ लड़के से होनी चाहिए। वैसे, लड़का यदि रात्रिभोजन का त्यागी है तो रात्रिभोजन की त्यागी लड़की से उसकी शादी होनी चाहिए।
यदि पत्नी रात्रिभोजन नहीं करती है और पति रात्रिभोजन करता है तो कभी संघर्ष हो सकता है। पति के पहले सूर्यास्त होने से पूर्व पत्नी भोजन कर लेगी, पति के लिए अलग थाली में भोजन रख लेगी। पति स्वाभाविक रूप से नहीं चाहता है कि पत्नी पहले भोजन कर ले । या तो साथ में करे अथवा बाद में करे, पति प्रायः इसी अभिप्राय का होगा। हाँ, कोई सुज्ञ और विवेकी पुरुष हो तो अलग बात है! 'मेरा तो दुर्भाग्य है कि मुझे रात्रिभोजन करना पड़ता है, मेरा व्यवसाय ही ऐसा है कि मैं सूर्यास्त के पूर्व भोजन कर ही नहीं सकता हूँ, यदि घर में सभी लोग रात्रिभोजन नहीं करें तो अच्छा ही है। ऐसी विचारधारा वाले लोग कितने मिलेंगे?
एक औरत को तो ऐसे पतिदेव मिले थे, बड़े विद्वान थे! वह महिला शादी से पूर्व रात्रिभोजन नहीं करती थी। शादी के बाद जब वह रात्रिभोजन नहीं करती है, सूर्यास्त से पहले भोजन कर लिया करती है, एक दिन उसके पतिदेव ने कहा : 'कौन-सा धर्म बड़ा? पति को भोजन कराकर भोजन करना बड़ा धर्म है या रात्रिभोजन नहीं करना बड़ा धर्म है? पतिव्रता स्त्री पति के भोजन के पश्चात् ही भोजन करती है! तू यदि पतिव्रता है तो तुझे मेरे पहले भोजन नहीं करना चाहिए ।' है न बड़ा तत्त्वज्ञानी!! खुद तो रात्रिभोजन करता है, पत्नी को भी वह पाप करने का उपदेश देता है। पत्नी उसके उपदेश का पालन नहीं करती है तो कहता है : 'तेरा मेरे प्रति प्रेम नहीं है! प्रेम होता तो मुझे खिलाये बिना तू कैसे खा सकती है?' फिर भी पत्नी रात्रिभोजन नहीं करती है तो कहता है : 'मेरे लिए भोजन मत रखना, मैं बाहर भोजन कर लूँगा!'
जीवन में जब ऐसा एकाध भी संघर्ष शुरू हो जाता है तब उसमें से दूसरे अनेक संघर्ष पैदा हो जाते हैं। एक मतभेद में से असंख्य मतभेद पैदा हो जाते हैं और जब मतभेद मनभेद पैदा कर देता है तब जीवन में तनाव पैदा हो जाता है। धर्मआराधना में मन नहीं लगता है। तत्त्वचिंतन नहीं हो सकता है, सत्संग और शास्त्र अध्ययन नहीं हो सकता है। इसलिए जीवनसाथी की पसन्दगी में शील की समानता का और कुल की समानता का विचार करना आवश्यक बताया है।
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