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प्रवचन-३४
११० '. स्त्री-पुरुषों के बीच के संबंध धर्म-आराधना में क्षति पहुँचानेवाले
नहीं होने चाहिए! आराधना-उपासना के रास्ते पर परस्पर सभा एक-दूसरे के पूरक-सहायक बनकर उन्हें जीना चाहिए। 'मिस्टर' और 'मिसिस' दोनों यदि 'क्वालिफाइड' - डिग्रीधारी होंगे, दोनों के दिमाग यदि तेज तर्रार होंगे तो उनका जीवन अशांति, क्लेश और संताप का शिकार बन जाएगा। आजकल तो मजदूर से लेकर 'मिनिस्टर' तक में शराब की बुराई फैली हुई है....मांसाहार और अंडा-आहार भी आजकल
तंदुरुस्ती एवं ताकत के नाम पर किये जाने लगे हैं! . समाज में आजकल पढ़े-लिखे बेवकूफों का और श्रीमंताई
के नशे में चूर हुए गरीबों का बोलबाला हो रहा है! न जाने यह सब समाज को कहाँ पर ले जाकर पटकेगा?
प्रवचन : ३४
महान श्रुतधर, पूज्य आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी 'धर्मबिंदु' ग्रन्थ के माध्यम से गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्म का विवेचन कर रहे हैं। शादी-विवाह की क्रिया गृहस्थ जीवन की एक प्रमुख क्रिया मानी गई है। असंख्य वर्षों से स्त्रीपुरुष के विवाह की परम्परा चली आ रही है। कैसे-कैसे स्त्री-पुरुष के बीच विवाह-संबंध होना चाहिए, ये सारी बातें आचार्यश्री ने स्पष्ट की हैं। स्त्री-पुरुष का संबंध ऐसा नहीं होना चाहिए कि उनकी धर्मआराधना में क्षति पहुँचे। उनकी मोक्षयात्रा में विक्षेप पैदा हो जायें। संबंध ऐसा होना चाहिए कि मोक्षयात्रा में एक दूसरे को सहायक बन सकें, एक-दूसरे के लिए प्रेरणास्त्रोत बन सकें।
स्त्री-पुरुष के बीच पाँच बातों की समानता होनी चाहिए, विवाह से पूर्व इन पाँच बातों की समानता देखनी ही चाहिए।
१. कुल की समानता, २. शील की समानता, ३. वैभव की समानता,
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