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प्रवचन-३१
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अमर नहीं होता है....।' वगैरह बहुत बातें आक्रोश में वह बोला | उसको ज्ञान ही नहीं था कर्मसिद्धान्त का! मैंने उसको समझाने का प्रयत्न किया, कहा : 'तुम्हारा लाभान्तराय कर्म उदय में हो तो उदार और दानवीर मनुष्य को भी तुम्हें कुछ देने की भावना नहीं होगी। मैं जानता हूँ कि उस दानवीर ने सैंकड़ों साधर्मिक भाई-बहनों को सहायता दी है और देते हैं, तुम्हें सहायता नहीं मिली, इसमें उनका दोष मत देखो, तुम्हारे पापकर्म का दोष देखो।' उसको मेरी बात से संतोष हुआ या नहीं, मैं नहीं जानता, वह तो उठ कर चला गया! संभव है कि उसने मेरे लिए भी गलत धारणा बना ली हो। 'साधुमहात्मा भी श्रीमन्तों का ही पक्ष लेते हैं....' वगैरह। __ यदि लाभान्तराय कर्म का 'क्षयोपशम' हो तो इष्ट और प्रिय पदार्थ अल्प प्रयत्न से मिल जाते हैं। कर्मों की तीन प्रक्रियाएँ :
सभा में से : 'क्षयोपशम' का अर्थ क्या है?
महाराजश्री : कर्म का कुछ नाश होना और कुछ शान्त होना, उसको क्षयोपशम कहते हैं। 'क्षय' यानी नाश और 'उपशम' यानी शान्त होना । आत्मा के साथ लगे हुए कर्मों में तीन प्रक्रियाएँ होती हैं :
० उपशम ० क्षयोपशम ० क्षय जिस प्रकार पानी में गिरा हुआ कचरा, पानी का बर्तन स्थिर रखने पर पानी में नीचे बैठ जाता है वैसे आत्मा में रहे हुए कर्म जब शान्त हो जाते हैं, तब 'कर्मों का उपशम हुआ' कहा जाता है। यह उपशम कुछ समय के लिए ही होता है। __ वैसे, कर्म कुछ नष्ट हो और कुछ शान्त हो उसको क्षयोपशम कहते हैं। कर्मों का क्षयोपशम-काल दीर्घ भी हो सकता है। ___कर्मों का क्षय यानी नाश। सभी कर्मों का नाश होने पर आत्मा का मोक्ष होता है। न्याय-नीति से लाभांतराय कर्म टूटता है :
लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम करना है? संपूर्ण नाश तो तभी होगा जब
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