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प्रवचन-३१
__ ८० संपूर्ण अन्तराय कर्म का नाश होगा। अन्तराय कर्म का समूल नाश तभी होगा जब मोहनीय कर्म का समूल उच्छेद होगा। यदि क्षयोपशम करना हो तो हो सकता है। लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम करने का उपाय है न्याय और नीति! न्याय-नीति से लाभान्तराय कर्म टूटते हैं।
न्यायाद् हि नियमतः भवान्तरोपात्तस्य लाभान्तरायकर्मणो विनाशः। 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ के टीकाकार आचार्यश्री ने यह बात कही है। इसमें दो बातें महत्त्वपूर्ण कही गई हैं। न्याय से ही लाभान्तराय कर्म का नाश होता है, यह एक बात है और दूसरी बात है न्याय से अवश्य लाभान्तराय कर्म का नाश होता है। ___ यदि आपको लाभान्तराय कर्म का नाश करना है और इच्छित सुखसाधन प्राप्त करने हैं, तो आपको न्याय-नीति का पालन करना ही पड़ेगा। अन्याय-अनीति का त्याग करना ही पड़ेगा। अन्याय-अनीति के प्रलोभनों से दूर रहना पड़ेगा। ___ यदि इस जीवन में, न्याय-नीति से व्यवसाय करने पर आपको अभिलषित अर्थ की प्राप्ति नहीं होती है तो समझना कि लाभान्तराय कर्म का उदय है, परन्तु फिर भी यदि आप न्याय-नीति के मार्ग को छोड़ते नहीं हो, न्याय-नीति से जितना मिलता है उसमें संतोष करते हो, तो अवश्य लाभान्तराय कर्म का नाश होगा और आपको अवश्य धन-संपत्ति की प्राप्ति होगी।
यह बात बँचती है आपको? किसी भी संयोग में अन्याय-अनीति नहीं करने का संकल्प करोगे? यदि आप वैषयिक सुखों के प्रति उदासीन बनोगे तो ही ऐसा संकल्प कर पाओगे। क्योंकि वैषयिक सुखों की तीव्र स्पृहा ही अन्याय-अनीति करवाती है। 'न्याय-नीति से मुझे जितना धन मिलेगा, उसमें मैं अपना गुजारा कर लूँगा; परन्तु अन्याय-अनीति तो नहीं ही करूँगा।' ऐसा संकल्प विषयों से विरक्त जीवात्मा ही कर सकती है |
वह भिखारी, नगर के बाहर उद्यान में भिक्षा लेने गया। तीन दिन का वह भूखा था, कड़ाके की भूख लगी थी। पिकनिक पर आये हुए लोगों ने वहाँ भी उस भिखारी को भिक्षा नहीं दी। अब वह भिखारी आगबबूला हो गया। उसको नगरवासियों के प्रति घोर तिरस्कार पैदा हुआ। 'ये सब मजे से माल-मेवा उड़ा रहे हैं, दिनभर खाते रहते हैं और मैं तीन-तीन दिन का भूखा हूँ, मुझे एक-दो रोटी भी नहीं देते हैं। अभी मैं उन सब को बता देता हूँ| पहाड़ पर से चट्टान गिराकर सबको मार डालूँगा.... किसी को जिंदा नहीं छोडूंगा....।'
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