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प्रवचन-३२ पड़ा.... बहुत बहुत शुक्रिया अदा करने लगा और कहा : 'अब मुझे यहाँ ही रहना है, मेरे घर नहीं जाना है। आपने मुझ पर बड़ी कृपा की है। पुलिसवाला हँसने लगा और वहाँ से चला गया।
वह आदिवासी सोचता है : 'मैं तो यहाँ आराम से रहता हूँ, मुझे पेटभर दाल-रोटी का भोजन मिल जाता है, परन्तु घर पर मेरी पत्नी, मेरे बच्चे.... बेचारे भूखे मरते होंगे। यदि मैं उनको भी यहाँ ले आऊँ तो? यहाँ रहने को पक्का मकान मिल जाएगा, पेटभर भोजन मिल जाएगा। पहनने को वस्त्र मिल जाएंगे। उनको यहाँ लाने का उपाय तो वह ही है। मैं जिस प्रकार उस खेत में गया था.... ठीक उसी प्रकार मेरी पत्नी और बच्चों को भी वहाँ ले जाना पड़ेगा.... फिर वह आदमी आएगा, हम सबको पीटेगा, पुलिस को सुपुर्द करेगा.... पुलिसवाला हमें यहाँ ले आएगा।'
समझते हो न इस कहानी का मर्म? भारत में ऐसे करोड़ों लोग इस प्रकार जीते हैं कि जिनको पूरा भोजन नहीं मिल रहा है, जिनको पूरे कपड़े नहीं मिल रहे हैं.... जिनको रहने को मकान नहीं मिल रहा है। उन लोगों से बहुत कुछ अच्छा जीवन जेल के कैदियों का जीवन है।
उस आदिवासी को जेल का जीवन पसन्द आ गया इसलिए उसने जेल में जाने का रास्ता भी पसन्द कर लिया। आपको यदि तिर्यंचगति का जीवन पसन्द आ गया हो तो अन्याय-अनीति एवं माया-कपट का रास्ता ठीक ही है। आप लोगों को जो मानवजीवन मिला है, क्या इससे तिर्यंच का जीवन बहुत अच्छा जीवन लगता है? तिर्यंचगति के दुःखों से मानवजीवन के दुःख क्या ज्यादा लगते हैं?
न्याय-नीति के धर्म पर विश्वास है? न्याय-नीतिपूर्ण व्यवहार से लाभान्तराय कर्म का नाश होता है, इस सिद्धान्त पर विश्वास है? यदि नहीं है तो अन्यायअनीति का मार्ग छोड़ोगे नहीं। अन्याय-अनीति का मार्ग कहाँ जाता है, यह बता दिया! तिर्यंचगति में वह मार्ग जाता है। यदि वहाँ जाना है, वहाँ जाने में डर नहीं लगता है, तो आपसे मुझे कुछ कहना नहीं है। __ग्रन्थकार आचार्यदेव कहते हैं कि न्याय-नीति से लाभान्तराय कर्म का नाश होता है और आगे जीवन में अल्प प्रयत्न से अर्थप्राप्ति होती है। इस वर्तमान जीवन में यदि लाभान्तराय कर्म का नाश हुआ होगा तो ही अर्थप्राप्ति होगी। यदि उस कर्म का नाश नहीं हुआ है तो लाख प्रयत्न करने पर भी अर्थप्राप्ति नहीं होगी। अन्याय-अनीति करने पर भी अर्थप्राप्ति नहीं होगी।
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