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प्रवचन-२८ अनुमान से अन्दाजा लगा रहा था कि लक्ष्मीदास क्या कर रहा है। लक्ष्मीदास ने एक खड्डा खोदा और उसमें वह डिब्बा रख दिया। खड्डे को पत्थर और मिट्टी से भर दिया।
परन्तु शंकाशील लक्ष्मीदास को चैन कहाँ? उसने लड़के से कहा : 'बेटा, जरा श्मशान में एक चक्कर लगाकर देख लो कि कोई आदमी देख तो नहीं रहा है।'
लड़के ने कहा : 'पिताजी, इस समय श्मशान में कौन होगा? आप फ़िजूल की शंका करते हो।' लक्ष्मीदास ने कहा : 'तू मूर्ख है। ऐसे महत्वपूर्ण कार्य में सावधानी बरतनी चाहिए। तूने इस दुनिया को देखा नहीं है। जा, देख के आजा।'
उस ठग ने सेठ की बात सुन ली। अब वह घबराया। उसने सोचा कि 'यदि मैं यहाँ से भागता हूँ तो लक्ष्मीदास को खयाल आ जाएगा कि किसी ने उसको देख लिया है....तो वह अपना माल निकालकर चला जाएगा। यदि मैं यहाँ बैठा रहा और लड़के ने मुझे देख लिया.... तो भी माल मेरे हाथ नहीं लगेगा। क्या करूं?' सोचता है ठग | बुद्धिमान था वह | उसके दिमाग में एक विचार आया.... वहीं पर लम्बा होकर वह सो गया। प्राणायाम सीखा हुआ होगा, जब वह लड़का पास आया, उसने सांस रोक ली। मुर्दे की तरह पड़ा रहा। लड़के ने वहाँ आकर देखा । उसने सोचा : यह श्मशान है, श्मशान में मुर्दे हो सकते हैं, फिर भी देख लूँ कि इसके श्वासोश्वास चलते हैं या नहीं?' उसने उस जिंदे मुर्दे के नाक के आगे अपना हाथ रखकर देखा । सांस बंद थी। उसने निर्णय कर लिया कि यह मुर्दा ही है। लक्ष्मीदास की सावधानी :
लड़का अपने पिता के पास गया, पिता से कहा : 'श्मशान में कोई जिन्दा पुरुष नहीं है । एक वृक्ष के नीचे एक मुर्दा ताजा मरा हुआ पड़ा है।' लक्ष्मीदास चौंक उठा, उसने लड़के से पूछा : 'मुर्दा पड़ा है? अखंड है, क्या? जला हुआ नहीं है? शरीर पर कपड़े हैं?' बहुत सारे प्रश्न पूछ डाले! लड़के ने कहा : 'पिताजी मुर्दा है तो अखंड | शरीर पर कपड़े भी हैं, परन्तु मैंने देखा कि उसकी सांस नहीं चल रही है। ताजा ही मरा हुआ लगता है।' लक्ष्मीदास ने कहा : 'ले मेरा यह डंडा, लेकर जा। उस मुर्दे को जोर से मारना। यदि जिन्दा होगा तो चिल्लाएगा....हिलेगा.... कुछ न कुछ चेष्टा करेगा।' लक्ष्मीदास ने लड़के को डंडा दिया। लड़का डंडा लेकर जाता है।
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