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प्रवचन-२८
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उधर वह ठग सेठ की बात सुनता है। वह सोचता है : 'यदि मुझे माल चाहिए तो मार खानी ही होगी.... मुर्दा होने का अभिनय पूरा करना पड़ेगा।'
और वह वैसा ही पड़ा रहा। लड़के ने जाते ही उस पर डंडे से प्रहार कर दिया। परन्तु ठग ने मुर्दे का सफल अभिनय किया। जरा भी चिल्लाया नहीं, हिला भी नहीं....जरा सा उंहकार भी नहीं किया। लड़का उसके पिता के पास लौट गया और पिता को बता दिया कि वह मुर्दा ही है, जिन्दा आदमी नहीं है। परन्तु लक्ष्मीदास ऐसे कैसे मान ले लड़के की बात? उसने कहा : 'बेटा, डंडा रख दे यहाँ, यह छुरी ले जा और उसका नाक काट ले। जिन्दा होगा तो नाक नहीं काटने देगा।' आत्मरक्षा के लिए सोचते हो कभी?
देखी लक्ष्मीदास की सावधानी? धनमाल की सुरक्षा के लिए कितनी सावधानी बरतता है? इतनी सावधानी आप लोग आत्मरक्षा के लिए बरतो तो काम हो जाए न? परन्तु जितना प्रेम धन संपत्ति से है उतना प्रेम आत्मा से हो तो आत्मा की सुरक्षा का विचार करोगे न? है आत्मा के प्रति प्रेम? कैसे होगा? इस मानव जीवन में आत्मा को पापपिशाचों से बचा लो। पुराने पापकर्मों का नाश करो और नये पापकर्म आत्मा में प्रविष्ट न हो जाएँ इसलिए जाग्रत रहो। यदि पापों से आत्मा को नहीं बचाया तो दुःखों से किसी हालत में नहीं बच पाओगे। दुःखों से बचना है तो पापों से बचा लो आत्मा को | आत्मा को बचा लेने का पुरुषार्थ तभी हो सकेगा, जब आत्मा से प्रेम होगा। लक्ष्मीदास को अपने धन के प्रति प्रेम था, इसलिए उस धन को बचा लेने का प्रयत्न करता था। मार खाये बगैर माल मिले कैसे?
उस ठग की बहादुरी भी कैसी है? उसको लक्ष्मीदास का माल पार कर जाना है, लक्ष्मीदास का खजाना हाथ करना है, इसलिए डंडे का प्रहार सहन कर लिया और नाक भी कटवा लिया। हाँ, लड़का छुरी ले कर गया और नाक काट दिया। डाकू ने मुर्दे का कैसा अद्भुत अभिनय किया होगा? चूंकि उसने अपने मन में सोच लिया कि 'मार खाये बिना माल नहीं मिलता। मार खानी ही पड़ेगी। दुःख सहन किये बिना सुख नहीं मिलता है।'
यदि इस सिद्धान्त को आत्मविकास की दृष्टि से अपनाया जाए तो धर्मपुरुषार्थ कितना प्रबल हो जाये? आप लोगों को धर्मआराधना करनी है
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