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प्रवचन-३०
___ ६७ परिग्रह संज्ञा क्रूरता में से पैदा होती है : __परिग्रह संज्ञा की सबसे बड़ी खराबी यह है कि यह संज्ञा जीवात्मा को क्रूर बना देती है। हृदय की क्रूरता कठोरता कभी भी आत्मविशुद्धि नहीं होने देती। आत्मदृष्टि खुलने ही नहीं देती। उदायी राजा की हत्या का कारण क्या था?
जानते हो उस वेषधारी विनयरत्न मुनि को? उदायी राजा की उसने क्यों हत्या की थी? उदायी के शत्रु राजा ने घोषित किया था कि 'जो कोई उदायी राजा की हत्या करेगा उसको मैं श्रेष्ठ इनाम दूंगा। श्रेष्ठ उपहार दूंगा।' एक युवक को इनाम की आकांक्षा जगी! 'मुझे लाखों रूपये मिलेंगे यदि उदायी राजा की हत्या कर दूँ तो!' लाखों रूपये की लालच से प्रेरित होकर उस युवक ने उदायी राजा की हत्या करने का निश्चय किया, 'प्लान' भी बनाया। उसने जानकारी प्राप्त कर ली कि उदायी राजा का पूर्ण विश्वास किस व्यक्ति पर है और राजा कहाँ पर निःशस्त्र होकर जाता है। उसको ज्ञात हुआ कि उदायी राजा जैनाचार्य श्री कालिकसूरिजी का अनन्य भक्त है और कालिकसूरि पर पूर्ण विश्वास रखता है। पर्व के दिनों में वह रात्रि का समय कालिकसूरि के सान्निध्य में व्यतीत करता है। विनय का अभिनय : रजोहरण में छुरी : ___ उस युवक ने कालिकसूरिजी का शिष्य बन जाने का सोचा। गया वह कालिकसूरिजी के पास और वैरागी बन गया! वैरागी होने का ऐसा सफल अभिनय उसने किया कि कालिकसूरिजी जैसे महान ज्ञानी आचार्य भी उसके चक्कर में आ गये! उन्होंने उस युवक को दीक्षा दे दी, अपना शिष्य बना लिया। उस युवक की एक योजना सफल हो गई।
उसने काफी होशियारी से अपने रजोहरण में, जो साधु को जीव-रक्षा के लिए अपने पास ही रखना होता है, उसमें छुरी छिपा के रख ली। हालाँकि साध्वाचार के अनुसार साधु को दिन में दो बार रजोहरण खोलकर उसकी प्रतिलेखन क्रिया करनी होती है, वह युवक करता है वह क्रिया, परन्तु इतनी सावधानी से करता है कि सहवर्ती किसी साधु को छुरी का खयाल तक नहीं आता है। दीक्षा के दिन से ही वह युवक-साधु कालिकसूरिजी का श्रेष्ठ विनय करता
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