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प्रवचन-२९ व्यवहार शुद्ध होना चाहिए, इतना विचार भी नहीं आता है तो समझ लो कि गृहस्थधर्म के पहले सोपान पर भी आप नहीं चढ़े हो। आपके पापोदय से ऐसी सरकार मिली है :
आप लोगों के दुर्भाग्य की सीमा नहीं है! आपको सरकार भी वैसी ही मिली है! अर्थव्यवस्था ऐसी दोषपूर्ण बन गई है कि देश की प्रजा परेशान हो गई है। इतने सारे 'टैक्स' लगाये गये हैं और लगाये जा रहे हैं कि मनुष्य का न्यायनीति के मार्ग पर चलना मुश्किल हो गया है। लाख रूपया कमाने वाले से सरकार ६५ हजार रूपये माँगती है! कौन देगा ६५ हजार सरकार को? इसलिए आज ज्यादातर व्यापारी वर्ग 'टैक्स' की चोरी करता है। 'टैक्स' के रूपये बचाने के लिए अनीति करता है। सरकार में बैठे नेता लोग क्या यह बात नहीं जानते हैं? जानते हैं... और उनमें से भी कई नेता स्वयं 'टैक्स' बचाने की प्रवृत्ति करते हैं। ऐसी दोषपूर्ण अर्थनीतिवाला राज्यशासन मिलना यह भी पापकर्म का उदय है! __ इन बातों का सार यह है कि यदि आप कम आवश्यकताओं में जियो और धनवान् बनने की लालसा छोड़ो, तो ही आप न्याय-नीति के मार्ग पर चल सकते हो।
दूसरी बात यह है कि आप यदि व्यापारी हैं तो आपके ग्राहकों के साथ अन्याय न करें। ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी नहीं करें| माल में मिलावट नहीं करें। सरकार के साथ आप ईमानदारी से व्यवहार नहीं कर सकते परन्तु प्रजा के साथ बेईमानी नहीं करें। यदि आपने प्रजा के साथ अन्याय किया तो प्रजा आपके साथ अन्याय करेगी ही! आप दूसरों को लूटेंगे तो कभी न कभी आप भी लूटे जाओगे। जैसा दो वैसा ही लो : ___ एक गाँव था | गाँव में एक सेठ की अनाज किराने की दुकान थी। दुकान में अनाज मसाला, गुड़ इत्यादि सेठ बेचता था। एक अनपढ़ महिला इस दुकान से ही धान्य वगैरह लेती थी। एक दिन उसने सेठ की दुकान से एक किलो गुड़ खरीदा। गुड़ लेकर वह अपने घर चली गई। इधर सेठ के घर मेहमान आये, घर में घी नहीं था। सेठानी ने लड़के को घी लेने उसी महिला के घर भेजा | महिला के घर पर गायें थीं, गाय का शुद्ध घी उसके घर मिलता
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