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प्रवचन-३० मा. पैसे प्राप्त करने के लिए कोई जाप या ध्यान या होम-हवन करने mms
की आवश्यकता नहीं है... न किसी प्रकार की मानता मानने की या डोरा-धागा करने-करवाने की जरूरत है... आवश्यकता है केवल न्याय-नीति के रास्ते पर कदम रखने की। .परिग्रह संज्ञा-पैसे एकत्र करने की तीव्र लालसा जीवात्मा को क्रूर बना डालती है। उसका दिल कठोर और निर्दय हो जाता है। कठोर बने हुए हृदय में आत्मविशुद्धि के फूल नहीं खिल सकते! जिनशासन की रक्षा केवल प्रभावशाली भाषण झाइने से या पत्र-पत्रिकाएँ छपवाने मात्र से नहीं हो जाती! इसके लिए चाहिए कर्तव्यपालन की पूरी समर्पितता! अपना सर्वस्व लुटा देने की तैयारी!
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प्रवचन : ३०
महान श्रुतधर, पूज्य आचार्यदेव श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी अपने स्वविरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थजीवन के सामान्य धर्म का स्वरूप समझाते हैं।
सर्वप्रथम उन्होंने अर्थोपार्जन की चर्चा की है। अन्याय, अनीति और बेईमानी से अर्थोपार्जन करने का मार्ग गलत है, अयोग्य है और अर्थप्राप्ति में प्रतिबंधक है, यह बात सिद्ध करके वे आगे कहते हैं कि न्याय-नीति ही अर्थप्राप्ति का सच्चा मार्ग है! अर्थप्राप्ति का यह अत्यन्त रहस्यभूत उपाय है। धनप्राप्ति का सच्चा रास्ता :
अर्थप्राप्ति के लिए कोई दूसरा मंत्रजाप करने की आवश्यकता नहीं है, कोई देव-देवी की मानता मानने की जरूरत नहीं है। जरूरत है न्याय-नीति के मार्ग पर दृढ़ता से चलने की। दुर्भाग्य तो आप लोगों का यह है कि आप लोग अन्याय-अनीति और चोरी से अर्थप्राप्ति करना चाहते हो और उसमें सफलता प्राप्त करने के लिए देव-देवी की प्रार्थना करते हो! अनेक प्रकार के मंत्रजाप करते हो!
सभा में से : यदि इस प्रकार आप अन्याय-अनीति का निषेध करेंगे और हम लोग अन्याय-अनीति का त्याग कर देंगे तो हमें अर्थप्राप्ति ही नहीं होगी!
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