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प्रवचन-२९ बहुत रूपये कमाने पर भी सुख नहीं मिलता हो, तो वे रूपये किस काम के? आज के जमाने की एक घटना :
एक आदर्शवादी लड़का था। उसकी माता ने उसको बहुत ही अच्छे संस्कार दिये थे। लड़का ग्रेज्युएट हो गया। एक सरकारी विभाग में उसको सर्विस मिल गई। अच्छा दफ्तर मिला था उसको। यदि वह चाहे तो बेइमानी से प्रतिदिन पचास-सौ रूपये प्राप्त कर सके । परन्तु यह लड़का तो आदर्शवादी था। एक पैसे की भी रिश्वत वह नहीं लेता है। उसको सरकार से जो तनख्वाह मिलती है उसमें सन्तोष करता है। परन्तु उसकी पत्नी को यह आदर्श पसन्द नहीं आया। उसको तो अच्छा बंगला चाहिए था! अच्छा फर्नीचर.... अच्छे कपड़े.... सुन्दर जेवर और सुन्दर कार चाहिए थी। यह सब ज्यादा रूपये से ही प्राप्त हो सकता था? उसने अपने पति को रिश्वत लेने के लिए मजबूर किया। एक-दो वर्ष तो उस युवक ने पत्नी की बात पर ध्यान नहीं दिया, परन्तु पत्नी के प्रतिदिन के आग्रह से, झगड़े से वह तंग आ गया और उसने रिश्वत लेने की बात स्वीकार कर ली। उसने अपनी पत्नी को कह दिया कि 'अन्याय से कमाया हुआ धन सुखी नहीं करेगा, दुःखी करेगा.... इसलिए आग्रह छोड़ दे....' परन्तु पत्नी नहीं मानी सो नहीं ही मानी।
सभा में से : हम लोगों की भी यही दशा है! औरतों की आकांक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं, आवश्यकताएँ काफी बढ़ रही हैं.....। उनकी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए हम लोगों को अन्याय-अनीति करके भी रूपये कमाने पड़ते हैं। पत्नी का बहाना बनाकर छूट जाना है आपको?
महाराजश्री : और आप लोगों की यानी पुरुषों की आवश्यकताएँ नहीं बढ़ी हैं.... आकांक्षाएं नहीं बढ़ी हैं, यही आपका कहने का मतलब है न? महिलाओं की वजह से ही आप अन्याय-अनीति से अर्थोपार्जन करने जाते हो? बड़े बेईमान हो आप लोग! दोषारोपण कर दिया महिलाओं पर, आप बन गये संत पुरुष! मैं जानता हूँ आप लोगों को....लाखों रूपये जमा कर बैठे हो, फिर भी दुकान की माया नहीं छूटती है! दो-चार बंगले बना कर बैठे हो फिर भी व्यापार धंधा नहीं छोड़ते हो! कहिए, आपकी धर्मपत्नी आपको कह दे कि 'अब मैं आपसे जेवर नहीं मांगूंगी.... नये कपड़े मुझे नहीं चाहिए.... नया मकान.... नयी गाड़ी नहीं चाहिए....' तो आप नया धन कमाना छोड़ देंगे? अन्यायअनीति छोड़ देंगे?
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