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प्रवचन-२७
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अधिकार की लड़ाई है चौतरफ :
अधिकार की लड़ाइयाँ सर्वत्र फैल गई हैं। घर-घर में यह लड़ाई पहँच गई है। पत्नी पति से अधिकार माँग रही है, पुत्र पिता से अधिकार माँग रहा है। नौकर मालिक से अधिकार माँग रहा है। प्रजा सरकार से अधिकार माँग रही है। सर्वत्र अधिकार की दौड़-धूप है। अब धर्मस्थानों में भी अधिकार की भूख भड़क उठी है न? आपके लोग कहते हैं कि उपाश्रय पर हमारा अधिकार है और दूसरे कहते हैं कि उपाश्रय पर हमारा अधिकार है। किसी जगह गुजराती-मारवाड़ी के अधिकारों की लडाई हो रही है। कहीं ओसवालपोरवाल का चक्कर है।
व्यापार में जिस तरह कुलपरंपरा का खयाल करना है, अनिंदनीयता का विचार करना है, वैसे समय का भी खयाल करना है। व्यापार करनेवालों को :
० किस समय व्यापार करना चाहिए, ०किस मौसम में कौनसा व्यापार करना चाहिए, ० किस समय दूकान बँद रखनी चाहिए और ० किस 'सीझन' में व्यापार नहीं करना चाहिए।
इन चार बातों का पूरा ख़याल करना चाहिए | पहली बात है किस समय व्यापार करना चाहिए | यानी जिस समय-सुबह, दुपहर या शाम, ग्राहक आते हों, उस समय दूकान खुली रहनी चाहिए और व्यापार में पूरा ध्यान देना चाहिए। यदि ग्राहक शाम को आते हों और आप दोपहर को ही दुकान बंद कर देते हों, तो आपका व्यापार ठप्प हो जायेगा। दूसरी बात है किस मौसम में कौनसा व्यापार करना चाहिए। यानी आपका मौसमी व्यापार है तो सर्दी में
और गर्मी में कौन सा व्यापार करने से आपको विशेष अर्थलाभ हो सकता है, उस बात का आप को पूरा ध्यान रखना चाहिए | तीसरी बात है किस समय दुकान बंद रखनी चाहिए। जिस समय गाँव में परमात्मभक्ति का महोत्सव हो रहा हो, गाँव में किसी प्रसिद्ध और लोकप्रिय नागरिक की मृत्यु हो गयी हो, पर्युषण महापर्व जैसे महापर्व के दिवस हों, गाँव में 'कफ्र्यु लगा हो....आप को दूकान नहीं खोलनी चाहिए | चौथी बात है किस मौसम में व्यापार नहीं करना चाहिए। आप समझे इस बात को? वर्षाऋतु में व्यापार नहीं करना चाहिए | वर्षाकाल धर्मआराधना करने का उत्तम समय है। इस मौसम में व्यापार स्थगित रखना चाहिए।
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