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प्रवचन-२७
३५ सभा में से : पूरा चातुर्मास व्यापार कैसे स्थगित किया जाय? महाराजश्री : क्यों? क्या व्यापार स्थगित रखो तो क्या निर्धन हो जाओ, वैसी स्थिति है? हाँ, जो लोग नौकरी करते हैं और घरसंसार चलाते हैं, वे नौकरी छोड़ नहीं सकते चार महीना | परन्तु जिनके पास लाखों रूपये हैं, वे क्या चार महीना दुकान नहीं जाएं तो भूखे मर जायेंगे? परन्तु हृदय में धनदौलत की प्रचुर आसक्ति भरी पड़ी है। पैसे की ममता पारावार भरी पड़ी है। अरे, आप चार महीने दुकान बंद मत रखें, दुकान चाहे खुली रहे, आप दुकान नहीं जाएं, तो क्या नहीं चल सकता? आप जानते हो कि गुर्जरेश्वर राजा कुमारपाल चातुर्मास में राजसभा में भी नहीं जाते थे। जिनालय में परमात्मपूजन करने जाते थे, पौषधशाला में गुरुदेव के दर्शन-वंदन करने जाते थे। बस, तीसरी जगह जाते ही नहीं थे। पूरे गुजरात का साम्राज्य सम्हालते थे न? आपको क्या पूरा अपने गांव का भी साम्राज्य सम्हालना है? होगी एक-दो दुकानें अथवा एक-दो 'फैक्ट्रियाँ'।
सभा में से : हम लोगों के पास इससे ज्यादा कहाँ से होगा? आपकी कृपा हो जाए तो काम बन जाए। ___ महाराजश्री : यानी मेरी कृपा से दुकानें बढ़नी है क्या? मेरी कृपा से धन बढ़ाना है क्या? मेरी कृपा का उपयोग पाप बढ़ाने में करना है क्या? मेरी क्या, किसी भी साधु-संत की कृपा, पाप या पाप के साधन बढ़ाने हेतु मत लीजिए, मत मांगिए । आप तो ऐसी कृपा मांगो कि घर और दुकान की ममता ही छूट जाय | ममता थोड़ी भी छूटे तो कम से कम दैनिक धर्मआराधना छोड़ कर तो दुकान नहीं जाओगे। कुछ लोग इसलिए प्रवचन सुनने नहीं आते हैं चूंकि उनको दुकान जाना होता है। कुछ लोग इसलिए प्रभुपूजन नहीं करते हैं चूंकि उनको दुकान पहुँचने में देरी होती है! रात्रिभोजन की आदत हो चुकी है :
रात्रिभोजन नहीं करना पड़े उस प्रकार व्यवसाय करते हो न? शाम को सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेते हो न? आजकल रात्रिभोजन का पाप तो सामान्य बन गया है। रात्रिभोजन करते समय कोई दुःख भी नहीं होता है। होता है क्या? दुकान पर कोई ग्राहक न हो तो भी भोजन तो रात को ही घर जाकर करने का। कुछ लोगों के लिए तो रात्रिभोजन व्यसन बन गया है। जिस प्रकार व्यापार में संपत्ति का और काल का खयाल करना है, वैसे क्षेत्र
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