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प्रवचन-२७ का भी ध्यान रखना है। कौनसे प्रदेश में कौन सा व्यापार करना चाहिए | कौनसे गाँव में कौनसा व्यापार चल सकता है, उस बात का ख़याल करना चाहिए | जो धंधा जिस गाँव में, जिस प्रदेश में नहीं चल सकता हो, वैसा धंधा नहीं करना चाहिए। किस जगह दुकान खोलनी चाहिए, किस जगह दुकान नहीं लेनी चाहिए, इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए। ऐसा ध्यान रखा जाये तो अनेक उपद्रवों से आप बच सकते हो। व्यापार में सफलता की 'कुँजियाँ' :
व्यापार में, नौकरी में अंतिम बात बड़ी महत्त्व की है। वह है न्याय की, प्रामाणिकता की । अर्थोपार्जन में आपका व्यवहार शुद्ध चाहिए | न्यायपरायणता व्यापार-व्यवसाय में सफलता की 'मास्टर-की' गुरुचाबी है। आप में न्यायपरायणता कितनी है? आप निम्न प्रश्नों के माध्यम से जान लें।
१. क्या आप व्यवसाय में किसी प्रकार की मिलावट तो नहीं करते हैं न? २. क्या आप व्यापार में गलत नाप-तौल तो नहीं रखते हैं न? ३. ज्यादा पैसा लेकर कम माल नहीं देते हो न? ४. अच्छा 'सेम्पल' बताकर घटिया माल तो सप्लाय नहीं करते हो न? ५. किसी की अमानत हड़प तो नहीं करते हो न? ६. रुपयों का व्याज ज्यादा तो नहीं लेते हो न?
७. किसी से रुपये माँगते हो, वसूल करते समय गरीबों पर जुल्म तो नहीं करते हो न? ___ इन बातों पर हम विस्तार से सोचेंगे। क्योंकि इन बातों में आप लोगों की बहुत कमजोरी है। यदि इन बातों पर आप पूरा ध्यान दें और व्यवहार में लायें तो अर्थोपार्जन की क्रिया आपके लिए धर्म बन जाए। अर्थोपार्जन के सुंदर लक्ष्य :
आपका लक्ष्य मात्र आप का सुख नहीं होना चाहिए, अर्थोपार्जन का लक्ष्य जैसे आजीविका हो वैसे ही दीन, अनाथ, अपंग.....गरीब लोगों के उद्धार का भी लक्ष्य होना चाहिए । 'मेरे पास पर्याप्त धन आ जाए तो मैं दीन-अनाथों का दुःख दूर कर दूँ । गरीबों की गरीबी दूर कर दूँ। भूखों के लिए सदाव्रत खोल दूं, राहगिरों के लिये पानी की व्यवस्था कर दूँ। बेघर लोगों के लिए निवासस्थानों की व्यवस्था कर दूं.....।'
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