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प्रवचन- २७
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सभा में से : आजकल तो लोग दूसरों के रूपयों से ही ज्यादातर व्यापार करते हैं! जब बड़ा नुकसान आता है तब 'डिफोल्टर' घोषित हो जाते हैं।
महाराजश्री : 'डिफोल्टर' जाहिर होने में जिनको शर्म नहीं आती है, जो बेशरम लोग हैं, वैसे लोगों की बात ही क्या करें ? दिवाला निकालना आज मामूली बात बन गई है। बिना सोचे बिना विचार किये व्यापार करनेवालों की इज्जत इस प्रकार समाप्त हो जाती है। समाज में, 'मारकेट' में मानभंग हो जाता है। घोर अशान्ति में उसको सुलगना पड़ता उसके परिवार वालों को मानहानि सहन करनी पड़ती है। इसलिए व्यापार अपनी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए ।
दुनिया की बात जाने दें, दुनिया में हर बुराईवाले लोग मिल जायेंगे । आपको तो आपके विषय में सोचना है । मंदिरों में और उपाश्रयों में आनेजाने वाले आप लोग यदि दिवाला निकालते हो तो आपकी बदनामी तो होती है, साथ-साथ धर्म की और धर्मगुरुओं की भी बदनामी होती है। लोग निन्दा करते हैं। 'देखा इस धर्मात्मा को ? गाँव के पैसे से धंधा किया.... दिवाला निकाला..... बेचारी विधवाओं के रूपये भी डूब गये.... ऐसे भगतों के कारनामें ही ऐसे होते हैं...। दिखावे का धर्म करनेवालों का नाम ही मत लो .... ।'
आपको व्यापार करते समय यह भान रहना चाहिए कि 'इस व्यापार में ज्यादा से ज्यादा कितना नुकसान आ सकता है, मेरी अपनी इतनी संपत्ति है या नहीं? परिवारवालों को तो किसी प्रकार की मुसीबत नहीं आयेगी न? फिर से व्यापार कर सकूँ, वैसी आर्थिक स्थिति रहेगी या नहीं ?'
व्यापार में मात्र मुनाफे का विचार पर्याप्त नहीं है। नुकसान की संभावना भी सोच लेनी चाहिए। नुकसान होने पर भी आप रास्ते के भटकते निर्धन न बन जायं, वैसे व्यापार करना चाहिए।
सभा में से : दुर्भाग्य का उदय हो तो श्रीमंत भी भिखारी बन जाता है न? महाराजश्री : पर्याप्त विचार करने पर भी, सोचकर व्यापार करने पर भी, कभी अकस्मात् हो जाए और कल्पनातीत संकट आ जाय यह बात अलग है। जान-बूझ कर कोई श्रीमंत भी भिखारी बनना चाहेगा? आप अपनी बुद्धि से सोच-विचार कर व्यापार-व्यवसाय करें, ताकि आपको आर्थिक संकट में फँसना न पड़े। यदि व्यापार में आप १. कुलपरंपरा का, २. अनिंदनीयता का और ३. आर्थिक स्थिति का विचार करते हैं तो आपकी व्यापारक्रिया गृहस्थधर्म बन जाती है।
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