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प्रवचन-२७
३० यदि कहेंगे तो भी वे बाँट नहीं पायेंगे | सुलस ने तो घर पर जाकर प्रयोग कर
दिया।
पाप में हिस्सा कौन लेगा? दुःख में भी कोई नहीं!
सुलस घर पर गया। उसने लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी उठायी और लकड़ी काटने लगा। लकड़ी काटते समय एक घाव जानबूझ कर उसने अपने पैर पर कर दिया। पैर कट गया, खून बहने लगा। सुलस चिल्लाया : 'अरे........मेरा पैर कट गया....बहुत दर्द होता है.... सब आओ....मेरा दुःख बाँट लो तुम लोग....' ___ माता आई, पत्नी भी दौड़ती आई.... 'क्या हुआ? कैसे लगी कुल्हाडी? क्या बहुत दर्द होता है?' पूछने लगी। सुलस ने कहा : 'तुम लोग मेरा दुःख ले लो....मैं तुम्हारे लिए ही लकड़ी काटता था....काटते-काटते मेरा पैर कट गया....तो मेरा दुःख तुम लोगों को ले लेना चाहिए.... जरा सा तो ले लो....।' __ माता बोली : 'बेटा, तेरे घाव में दवाई भर के पट्टी बाँध देती हूँ.... दर्द कम हो जायेगा, परन्तु तेरा दर्द हम नहीं ले सकते.... किसी का दुःख किसीसे लिया नहीं जाता। दुःख दर्द तो मनुष्य को स्वयं भोगना पड़ता है....।'
सुलस ने अपनी पत्नी की ओर देखा और कहा 'तू तो मेरी पत्नी है, मुझ से बहुत प्यार करती है, तो मेरा दुःख नहीं ले लेगी?' पत्नी ने कहा : 'स्वामिनाथ, यदि आप दे सकते हो अपना दुःख तो दे दो, मैं भोग लँगी....| परन्तु ऐसे दुःख दिया जाता नहीं और लिया जाता नहीं.....अपना दुःख तो अपने आपको ही सहन करना पड़ता है।'
सुलस को अभयकुमार की बात स्मृति में थी। उसने कहा : 'तो फिर मैं जो रोजाना ५०० जीवों का वध करता हूँ, इससे जो घोर पाप कर्म बाँधता हूँ, उन पाप कर्मों का जब उदय होगा तब जो भयानक दुःख आयेंगे, वे दुःख क्या मुझे अकेले को ही भोगने पड़ेंगे? मैं जीववध का धंधा हम सब के लिए करता हूँ, तो क्या हम सब दुःखों को बाँट के नहीं भोगेंगे? तुम लोग क्या मेरे दु:खों को नहीं बाँट लोगे?' जो कर्म करे वही भुगते : ___ माता ने कहा : 'बेटा, जो कर्म बाँधता है वही भोगता है ।' पत्नी ने भी वैसा ही प्रत्युत्तर दिया। सुलस को अभयकुमार की बात पर पूर्ण विश्वास हो गया
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