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प्रवचन-२७
२९ होंगे न?' ऐसा मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप के दादा और पिता भी गलत कर सकते हैं! उनको धन की लालसा सताती हो तो वे बुरे धंधे कर सकते हैं। उनके पास सच्चा ज्ञान न हो तो वे निंदनीय व्यवसाय भी कर सकते हैं! आपको ज्ञान हो जाय कि 'यह धंधा बुरा है, तो आपको छोड़ देना चाहिए। जितने दादा और पिता होते हैं वे सब अनिंदनीय व्यवसाय ही करनेवाले होते हैं, ऐसा कोई नियम नहीं है। सुलस और अभयकुमार :
श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समय का एक प्रसंग है। कालसौकरिक नाम का एक कसाई था। प्रतिदिन ५०० भैंसों की वह हत्या करता था। कसाई था न? मांस बेचने का धंधा था। उसका पुत्र था महामंत्री अभयकुमार का मित्र! नाम था सुलस। पिता कालसौकरिक की मृत्यु हो गई। सुलस ने कुलपरंपरा का कसाई का धंधा चालू रखा। एक दिन अभयकुमार ने सुलस से कहा : 'सुलस, जीववध का यह व्यवसाय बुरा है, इससे घोर पापकर्म बंधते हैं....रोजाना सैंकड़ों जीवों की हत्या करना बहुत बड़ा पाप है।' __ सुलस ने कहा : 'अभयकुमार, यह धंधा हमारी कुलपरंपरा का धंधा है। हमारी आजीविका इसी धंधे से चलती है। मैं मात्र अपने लिये ही यह पाप नहीं करता हूँ, माता, पत्नी, पुत्र.... आदि सभी के लिए करता हूँ, तो जीवहत्या से जो पापकर्म लगते हैं वे पापकर्म पूरे परिवार में विभाजित हो जाते होंगे न? क्या मैं अकेले ही सारे पाप थोड़े ही बांधता हूँ?' __ अभयकुमार ने कहा : 'मेरे मित्र, जीववध तू करता है, इसलिए पापकर्म तू अकेला ही बाँधता है। इस व्यवसाय से जो रूपये मिलते हैं, उन रूपयों से सारा परिवार सुख भोगता है। तेरे पापों से उनको कोई संबंध नहीं है। पापों से जो दुःख आयेंगे, तुझे अकेले को ही भोगने पड़ेंगे। दुखों में कोई हिस्सा नहीं बँटायेगा।
सुलस को अभयकुमार की बात अँच गई। आप लोगों के दिमाग में यह बात अँची या नहीं? आप अनेक पाप करके लाखों रूपये कमा लो, और उन रूपयों से आपका सारा परिवार मौज-मजा करेगा परन्तु आपके पापों को बाँट कर नहीं लेगा! उन पापकर्मों के उदय से जो दुःख आयेंगे, आपको अकेले को ही भोगने पड़ेगे वे दुःख! परिवारवाले नहीं कहेंगे कि 'आपने हमारे सबके लिए पाप किये थे, तो लाईए, आपके दुःख हम सब बाँट लेते हैं!' ऐसा नहीं कहेंगे।
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