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प्रवचन-२७
२८ सरकार की दृष्टि में चाहे कोई व्यवसाय निंदनीय न हो, दूसरे लोभी और अर्थप्रेमी लोगों की दृष्टि में भले कोई धंधा त्याज्य न हो, परंतु ज्ञानी, विवेकी
और आत्मदृष्टा पुरुषों की दृष्टि में जो व्यवसाय त्याज्य हो, निंदनीय हो, धर्मविरुद्ध हो, वैसा व्यवसाय नहीं करना चाहिए। आजकल अपने अहिंसक जैन समाज के भी कुछ लोग ऐसे निंदनीय व्यवसाय करने लगे हैं। ये लोग जन्म से जैन होंगें, कर्म से जैन नहीं हैं | चाहे वे आर्य देश में जन्मे हों, परन्तु वे आर्य नहीं हैं। वे शरीर से चाहे मानव हों, उनमें मानवता नहीं है। मात्र श्रीमंत.....धनवान् बनने की ही तमन्ना वाले लोग क्या मानव हो सकते हैं? मानवताहीन मानव से तो पशु अच्छे होते हैं। ऐसे 'जैनों' ने जैन धर्म की शान को लांछन लगाया है। मात्र अर्थप्रेमी लोग क्रूर, निर्दय और मानवताहीन ही होते हैं। गंदे धंधे करने वालों में संभवतः दया, करुणा और मानवता हो ही नहीं सकती। तस्करों के इर्दगिर्द भय के भूत घूमते हैं :
ये सारी बातें मूर्ख और बुद्धिहीन लोगों के पल्ले पड़ने वाली नहीं हैं। पैसे के पीछे पागल बने हुए लोगों के दिमाग में ये बातें जंचने वाली नहीं हैं। उनको तो कोई भी 'बिजनेस' हो, ढेर सारे रूपये मिलने चाहिए! रूपयों के लिये ही जीते हों तो आपको भी ये बातें पसन्द नहीं आयेंगी।
बुद्धिमान बनो! निर्मल और तीक्ष्ण बुद्धि चाहिए। इस वर्तमान जीवन में और पारलौकिक जीवन में किसी प्रकार का गंभीर नुकसान न हो, इस प्रकार का अच्छा व्यवसाय करना चाहिए । 'स्मगलिंग' अवैध-व्यापार, तस्करी का धंधा कितना खतरनाक है? इस धन्धे में प्राण का खतरा होता है। यों भी यह धन्धा देशद्रोह है, राज्यविरुद्ध है। सतत् 'टेंशन' बना रहता है | भय के भूत निरंतर स्मगलरों के इर्दगिर्द नाचते रहते हैं। उनके जीवन में आप शांति, स्वस्थता
और स्थिरता नहीं देख पायेंगे। उनके परिवारवालों को भी अशांति और उद्वेग में ही जीवन गुजारना पड़ता है। परंपरागत भी निंदनीय धंधा मत करो : ___ ऐसे निंदनीय व्यवसाय यदि कुलपरंपरा से चले आते हों तो भी आपको नहीं करने चाहिए | गलत परंपरा को निभाना अनुचित है, ऐसी परंपराओं को तो तोड़ना ही चाहिए। ऐसा नहीं सोचना कि 'यह व्यवसाय तो मेरे दादा भी करते थे, मेरे पिता करते थे, क्या वे मूर्ख थे? वे करते होंगे तो ठीक ही करते
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