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प्रवचन-२७
___ २६ आपकी कुल परम्परा से कोई व्यवसाय चला आ रहा है और यदि वह व्यवसाय अनिन्दनीय है, तो आपको वही व्यवसाय करना चाहिए। व्यवसाय का अनिंदनीय होना अति आवश्यक है। चूंकि मनुष्य अपनी निंदा से अशांत बनता है! गाँव में, समाज में, स्नेही स्वजनों में यदि आपकी निंदा होती है, आपके बुरे व्यापार की निंदा होती है और आपको मालूम हो गया कि 'लोग मेरी निंदा कर रहे हैं, तो आपके मन में अशांति पैदा हो जायेगी। आपके परिवार के सदस्यों को भी बुरा लगेगा। संभव है कि इससे आपका मन धर्मआराधना में एकाग्र नहीं बन पायेगा।
आप लोग ही सोचो कि दूसरा कोई मनुष्य निंदनीय व्यापार करता है, तो आप लोग निंदा करते हो या नहीं? आपके समाज में से किसी ने शराब की दुकान खोली हो, किसी ने हड्डियाँ पीसने का कारखाना खोला हो, किसी ने स्मगलिंग-तस्करी का धंधा शुरू किया हो, तो आप लोग उनकी आलोचना करते हो या नहीं? तो फिर, आप लोग स्वयं ऐसा गर्हणीय धंधा करोगे तो दूसरे लोग आपकी निंदा करेंगे या नहीं? केवल पैसे से तो अशांति भी बढ़ेगी ही :
सभा में से : आजकल तो लोग जिस धंधे में ज्यादा पैसा मिलता हो, वैसा ही धंधा पसंद करते हैं। निंदनीय-अनिंदनीय का भेद नहीं करते! ___ महाराजश्री : इसलिए तो वैसा धंधा करने वाले लोग ज्यादा अशांत हैं! उनके जीवन में शांति नहीं होती, प्रसन्नता नहीं होती, धर्म-आराधना नहीं होती। वे ज्यादा धन कमाने में ही जीवन व्यतीत कर देते हैं। धनसंपत्ति ही उनका जीवन होता है। धनसंपत्ति ही उनके जीवन का सर्वस्व होता है। ऐसे कुछ लोगों को मैं जानता हूँ | मैंने ज्यादातर ऐसे लोगों में क्रूरता, कठोरता और निर्दयता पायी है। नहीं होती है दया और करुणा, नहीं होती है मानवता और नहीं होती है धर्मपरायणता।
सद्गृहस्थों को ऐसे निंदनीय व्यवसाय नहीं करने चाहिए। निंदा से बचना चाहिए। निंदा को सहन करने की आप में क्षमता हो तब भी ऐसे निम्न स्तर के धंधे नहीं करने चाहिए। निम्नस्तर के निंदनीय व्यवसाय करने से पाप तो होते ही हैं, साथ-साथ स्वयं के परिवार की मानसिक तन्दुरस्ती बिगड़ती है। समाज में अनेक दूषण प्रविष्ट हो जाते हैं, देश में बुराइयों का प्रसार होता है।
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