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प्रवचन-२७ छ.गलत और अवैध व्यापार करनेवालों की जिन्दगी जरा भीतर
से देखो....आप को वहाँ निरी अशांति.... पीड़ा.... बेचैनी और परेशानी देखने को मिलेगी! उनका पारिवारिक जीवन भी अशांति की आग में झुलसता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रति वर्ष भारत में पचपन लाख पक्षियों का व्यापार होता है! व्यक्ति के जीवन में जब स्नेह का झरना सूख जाता है तब फिर उस व्यक्ति का जीवन जीवन न रहते हुए केवल यंत्र बन जाता है! हाँ...चलता...फिरता हुआ मानवयंत्र! जिन्दा 'रोबोट' समझ लो! व्यापार करने में कई तरह की सावधानियाँ रखनी होती, हैं....हरिभद्रसूरिजी एवं श्री मुनिचन्दसूरिजी कितना मार्मिक एवं मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन दे रहे हैं।
प्रवचन : २७
Lee9 महान श्रुतधर पूजनीय आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी रचित 'धर्मबिंदु' ग्रंथ में गृहस्थ का 'सामान्य धर्म' बता रहे हैं। गृहस्थजीवन में अर्थपुरुषार्थ और कामपुरुषार्थ की प्रधानता होती है। जिस मनुष्य की ज्ञानदृष्टि उन्मीलित होती है वह मनुष्य धर्मपुरुषार्थ को भी जीवन में यथोचित स्थान देता है। ज्ञानदृष्टिवाला गृहस्थ उस ढंग से अर्थपुरुषार्थ और कामपुरुषार्थ करता है कि जिससे धर्मपुरुषार्थ को क्षति न हो । मानवजीवन का उच्च मूल्यांकन करनेवाला मनुष्य जानता है कि धर्मपुरुषार्थ करने का श्रेष्ठ जीवन, श्रेष्ठ समय मानवजीवन ही
निंदनीय व्यवसाय से निंदा व अशांति :
सर्वप्रथम यहाँ अर्थपुरुषार्थ की सही दिशा बतायी जा रही है। अर्थपुरुषार्थ में भी जागृति आवश्यक बतायी जा रही है। गृहस्थजीवन में अर्थोपार्जन अनिवार्य होता है। अर्थोपार्जन का पुरुषार्थ यदि कुल परम्परागत होता है, अनिन्दनीय होता है, अपने वैभवानुसार और देशकालानुसार होता है, न्यायपुरस्सर होता है तो वह पुरुषार्थ धर्मपुरुषार्थ बन जाता है! गृहस्थधर्म बन जाता है! यदि
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