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प्रवचन-२६ है न आपकी? आपकी राय में स्थूलभद्र कोशा के घर बारह वर्ष रहे, इसलिए वे मंत्रीपद के लिए अयोग्य थे, यही बात है न? हालाँकि स्थूलभद्रजी ने मंत्रीपद ठुकरा कर अपनी योग्यता सिद्ध कर ही दी थी, परन्तु यदि वे मंत्रीपद को स्वीकार करते, तो क्या वे कोशा के घर रह सकते थे? मगध का महामात्य बनकर क्या वे नृत्यांगना के घर रह सकते थे? उनको अपने घर पर ही रहना पड़ता। दो काम हो जाते : कोशा का सहवास छूट जाता और महामंत्री-पद प्राप्त हो जाता!
अयोग्य को योग्य बनाने का तरीका आता है? अयोग्य को अयोग्य ही बनाये रखने में बुद्धिमत्ता नहीं है। कभी पापकर्मों के उदय से योग्य और कुलीन मनुष्य भी थोड़े समय के लिए अयोग्य रास्ते पर चला जा सकता है, इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अयोग्य ही बना रहेगा। जब पापकर्मों का उदय समाप्त हो जाता है, उसकी योग्यता उभर आती है, घनघोर बादल बिखर जाते हैं, नव्य जीवन का सूर्य जगमगाता है।
'यह तो वेश्यागामी बन गया है....चाहे मेरा भाई है तो क्या हो गया? वेश्यागामी को महामंत्री-पद नहीं देना चाहिए, वह इस पद के लिए लायक नहीं है.....मेरी चले तो उसको देश निकाला दे दूँ....।' ऐसे विचार सज्जन पुरुष के नहीं होते हैं। सद्गृहस्थ के नहीं होते हैं। सद्गृहस्थ तो गंभीरता से सोचता है। मनुष्य की खानदानी भी एक मूल्यवान चीज है। ऐसे उच्च परिवारों में वंशपरम्परा से राज्यसेवा के पद चले आते थे, इससे राज्य को
और प्रजा को प्रायः लाभ ही होता था। स्थूलभद्रजी की दीक्षा में आप उपस्थित होते तो?
हालाँकि पितृहत्या की करूण घटना और उसके आसपास की कूटराजनीति की बातें सुनकर स्थूलभद्र का चित्त पूरे संसार से ही विरक्त हो गया था और उन्होंने राजा को मंत्रीमुद्रा लौटा दी थी। कोशा के वहाँ भी वापस नहीं गये थे, वे पहुँचे थे गुरुचरणों में | संसार का त्याग कर साधुधर्म अंगीकार कर लिया था। ___ यदि उस समय... उस जमाने में आप लोग होते तो स्थूलभद्रजी की दीक्षा का भी विरोध करते! ऐसे वेश्यागामी को कैसे दीक्षा दे सकते हैं? नहीं देनी चाहिए दीक्षा! १२-१२ वर्ष तक वेश्या के सहवास में रहने वाला दीक्षा के लिए योग्य हो सकता है क्या? दीक्षा लेकर बाद में.... 'ऐसी-ऐसी ही बातें करोगे न? आप लोगों की विचारधाराएँ भी गजब की होती हैं!
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