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प्रवचन-२६ नहीं देना चाहिए, 'राजा का पुत्र राजा और मंत्री का पुत्र मंत्री.....' यह प्रथा तो कुप्रथा है। महत्वपूर्ण पद योग्यतासंपन्न व्यक्ति को ही देने चाहिए। क्या महामंत्रीपद के लिए श्रीयक लायक नहीं था?
महाराजश्री : दोनों प्रश्न महत्वपूर्ण हैं। कभी ऐसा होता है कि अतिविश्वसनीय व्यक्ति पर भी शंका....अविश्वास पैदा हो जाता है। इससे व्यक्ति की कुलीनता खंडित नहीं होती। श्रीराम को सीताजी के प्रति, पवनंजय को अंजना के प्रति शंका पैदा हो गई थी, इससे क्या सीताजी और अंजना की कुलीनता नष्ट हो गई थी? पापकर्म का उदय होता है तो निर्दोष होने पर भी दोषारोपण हो जाता है। वररुचि ब्राह्मण ने शकटाल मंत्री के विरुद्ध षड्यंत्र रचा था, उस षड्यंत्र में शकटाल फँस गये थे। जानते हो न वह इतिहास? बड़ी ही रोमांचक हैं पाटलीपुत्र नगर की वे घटनाएँ! राजनीति में ऐसी कूटनीतियाँ होती रहती हैं।
उद्यान में जाकर श्रीयक ने स्थूलभद्रजी के चरणों में अपना सर रख दिया...... और फूट-फूट कर रोने लगा। स्थूलभद्र का भ्रातृ-स्नेह उभर आया
और श्रीयक को शांत होकर सारी घटना बताने को कहा। श्रीयक ने अपने उत्तरीय वस्त्र से आँसू पोंछ डाले और एक लतामंडप में जाकर दोनों भाई बैठे । श्रीयक ने वररुचि और शकटाल मंत्री के बीच कैसे वैर बंधा और वररुचि ने शकटाल मंत्री के विरुद्ध नंदराजा को कैसे उकसाया... वे सारी बातें कहीं। पिताजी शकटाल मंत्री ने अपने परिवार की जानरक्षा के लिए अपनी हत्या किस प्रकार श्रीयक के हाथ करवायी, वह घटना बताते हुए श्रीयक फूट-फूट कर रो पड़ा। पिता की हत्या पुत्र के हाथों क्यों? __ शकटाल मंत्री को जब लगा कि नंदराजा उनके प्रति शंकाशील है, नाराज है, तब उन्होंने अपने परिवार की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने का सोचा। वे नंदराजा के दिमाग से और मिजाज से परिचित थे। उनको लगा था कि 'संभव है राजा मेरे पूरे परिवार की हत्या करवा दे।' इसलिए उन्होंने अपने पुत्र श्रीयक को कहा कि 'कल जब मैं राजसभा में आकर महाराज को नमन करूँ, उस समय तू मुझ पर तलवार का वार कर देना।' श्रीयक तो स्तब्ध हो गया......उसने महामंत्री से कहा : पिताजी, आप क्या बोल रहे हैं? पितृहत्या का पाप मेरे हाथ क्यों करवाते हो?' तब शकटाल मंत्री ने कहा : बेटा, यह
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