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3. सारवत् - नवनीत भूत । 4. विश्वतोमुख - सर्वत्र मान्य अर्थ वाला। 5. अस्तोभ - उत, वै, हा, हि आदि अक्षरों का अकारण प्रक्षेप होने
पर वह स्तोभक कहलाता है, इनसे रहित होना अस्तोभ कहलाता है। 6. अनवद्य - अवध का अर्थ होता है गर्हित । अनवद्य यानि अगहित ।
वृहत्कल्प भाष्य गाथा 283-284 प्र.110 सूत्र कौनसे बतीस दोषों से रहित होना चाहिए ? उ. 1. अलीक - यथार्थ का गोपन करने वाला । 2. उपघात जनक 3.
अपार्थक - असंबद्ध अर्थ वाला 4. निरर्थक-अर्थहीन 5. छलयुक्त वचन 6. द्रोहण शील 7. निस्सार 8. अधिक - यथार्थ तत्त्व से अधिक का निरुपक 9. न्यून - यथार्थ के किसी अवयव से रहित 10. पुनरुक्त दोष से युक्त 11. व्याहत - परस्पर बधित 12. अयुक्त 13. क्रम भिन्न 14. वचन भिन्न 15. विभक्ति भिन्न 16. लिंग भिन्न 17. अनभिहित - स्वसमय में अमान्य 18. अपद - पद से रहित 19. स्वभाव हीन 20. व्यवहित - कुछ कहकर अन्य का विस्तार करना 21. काल दोष - काल का व्यत्यय करना 22. यति दोष - पदों के मध्य विश्राम रहित 23. छविदोष - परुष शब्दों में सूत्र का निर्माण । 24. समय विरुद्ध - किसी भी सिद्धान्त के विरुद्ध वरन वाला। 25. वचन मात्र - कोई वचन कहकर उसी को प्रमाणित करना। जैसे - पृथ्वी के किसी भी भाग में कीलिका गाडकर कहना कि यह भूमि का मध्य भाग है। 26. अर्थापति दोष 27. असमासदोष - प्राप्त समास के स्थान पर समास रहित पद कहना । 28. उपमा दोष – काजी की भाँति ब्राह्मण सुरापान करे। 29. रुपक दोष - पर्वत रुपी है अपने अंगों से शुन्य होता है। 30. पर प्रवृत्ति दोष - बहुत सारा
अर्थ कह देने पर भी कोई निर्देश नही देता है। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 28
आगमों के भेद-प्रभेद
आगमा
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