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आप्तपरोक्षा-स्वोपज्ञटीका अभ्यास तो इसीसे मालूम हो जाता है कि उनके ग्रन्थोंका प्रायः बहुभाग बौद्धदर्शनके मन्तव्योंकी विशद आलोचनाओंसे भरा हुआ है और इसलिये हम कह सकते हैं कि उनका बौद्धशास्त्रसम्बन्धी भी विशाल ज्ञान था। इस तरह विद्यानन्द भारतीय समग्र' दर्शनोंके गहरे और विशिष्ट अध्येता थे। संक्षेपमें यों समझिये कि आचार्य विद्यानन्दने कणाद, प्रशस्तकर, व्योमशिव, शङ्कर इन वैशेषिक ग्रन्थकारोंके, अक्षपाद, वात्स्यायन, उद्योतकर इन नैयायिक विद्वानोंके, जैमिनि, शवर, कुमारिल भट्ट, प्रभाकर इन मीमांसक दार्शनिकोंके, ईश्वरकृष्ण, माठर, पतञ्जलि, व्यास इन सांख्य. योग विद्वानोंके, मण्डनमिश्र, सुरेश्वरमिश्र इन वेदान्त विद्वानोंके और नागा. र्जुन, वसुबन्धु, दिङ नाग, धर्मकीर्ति, प्रज्ञाकर, धर्मोत्तर, जयसिंहराशि इन बौद्ध तर्कग्रन्थकारोंके ग्रन्थोंको विशेषतया अभ्यस्त और आत्मसात् किया था। इससे स्पष्ट है कि उनका दर्शनान्तरीय अभ्यास महान् और विशाल था। (ख) जैनशास्त्राभ्यास __ आ० विद्यानन्दको अपने पूर्ववर्ती जैन ग्रन्थकारोंसे उत्तराधिकारके रूपमें जैनदर्शनकी भी पर्याप्त ग्रंथराशि प्राप्त थी। आचार्य गृद्धपिच्छाचार्यका लघु, पर महागम्भीर और जैनवाङ्मयके समग्र सिद्धान्तोंका प्रतिपादक तत्त्वार्थसूत्र, उसको पूज्यपादीय तत्त्वार्थवृत्ति ( सर्वार्थसिद्धि ), अकलङ्कदेवका तत्त्वार्थवार्तिक और श्वेताम्बर परम्परामें प्रसिद्ध तत्त्वार्थभाष्य ये तीन तत्त्वार्थसूत्रकी टीकाएँ, आचार्य समन्तभद्रस्वामीके देवागमअप्तमीमांसा, स्वयम्भूस्तोत्र और युक्त्यनुशासन ये तीन दार्शनिक ग्रन्थ और रत्नकरण्डश्रावकाचारका यह उपासकग्रन्थ उन्हें प्राप्त थे। इसके अतिरिक्त, सिद्धसेनका सन्मतिसत्र, अकलङ्देवके अष्टशती, न्यायवि. निश्चय, प्रमाणसंग्रह, लघीयस्त्रय, सिद्धिविनिश्चय ये तीन जैनतकग्रन्थ, पात्रस्वामीका त्रिलक्षणकदर्शन, श्रीदत्तका जल्पनिर्णय और वादन्यायविच१. माधवके 'सर्वदर्शनसंग्रह' में जिन सोलह दर्शनोंका वर्णन किया गया है उनमें
प्रसिद्ध छह दर्शनोंको छोड़कर शेष दर्शन आ० विद्यानन्दके बहुत पीछे प्रचलित हुए हैं और इसलिये उन दर्शनोंकी चर्चा उनके ग्रन्थोंमें नहीं है। दूसरे, उन शेष दर्शनोंका प्रसिद्ध वैदिक दर्शनोंमें ही समावेश है। यही कारण है कि आ० हरिभद्र आदिने प्रसिद्ध छह दर्शनोंका ही ‘षड्दर्शनसमुच्चय' आदिमें संकलन किया है। अतः प्राचीन समयमें छह दर्शन ही भारतीय समग्र दर्शन कहलाते थे।-सम्पा० ।
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