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कारिका ११५ ] अर्हत्कर्मभूभृत्भेतृत्व-सिद्धि क्षणिकचित्तवत्। द्रव्यकर्माणि तु पुद्गलपरिणामात्मकान्येव प्रधानस्य पुद्गलपर्यायत्वात; पद्गलस्यैव प्रधानमिति नामकरणात् । न च प्रधानस्य पुद्गलपरिणामात्मकत्वमसिद्धम्, पृथिव्यादिपरिणामात्मकत्वात् । पुरुषस्यापुद्गलद्रव्यस्य तदनुपलब्धिः, बुद्ध्यहङ्कारादिपरिणामात्मकत्वात् । न हि प्रधाने बुद्ध्यादिपरिणामो घटते। तथा हि-न प्रधानं बुद्ध्यादिपरिणामात्मकम् , पृथिव्यादिपरिणामात्मकत्वात् । यत्तु बुद्ध्यादिपरिणामात्मकं तन्न पृथिव्यादिपरिणामात्मकं दृष्टम् , यथा पुरुषद्रव्यम् , तथा च 'प्रधानम्, तस्मान्न बुद्ध्यादिपरिणामात्मकम् ।।
$ ३००. पुरुषस्य बुद्ध्यादिपरिणामात्मकत्वासिद्धेर्न वैधर्म्यदृष्टान्ततेति चेत; न; तस्य तत्साधनात् । तथा हि-बुद्ध्यादिपरिणामात्मकः पुरुषः, चेतनत्वात् । यस्तु न बुद्ध्यादिपरिणामात्मकः स न चेतनो दृष्टः, यथा घटादिः, चेतनश्च पुरुषः, तस्माद्बुद्ध्यादिपरिणामात्मक इति सम्यगनुमानात्। रहित विनष्ट होनेवाला क्षणिक चित्त । किन्तु द्रव्यकर्म पुद्गलपरिणामात्मक ही हैं क्योंकि प्रधान पुद्गलका ही नाम है। हम जिसे पुद्गल कहते हैं उसे आप ( सांख्य ) प्रधान बतलाते हैं और इस तरह पुद्गलका ही आपने प्रधान नाम रख दिया है। तथा प्रधानको पद्गलका परिणाम कहना असिद्ध नहीं है, क्योंकि वह ( प्रधान ) पृथिवी आदिका परिणामरूप है। और यह पृथिवी आदिका परिणाम पुरुषके, जो पुद्गल द्रव्य नहीं है-चेतन द्रव्य है, उपलब्ध नहीं होता; क्योंकि वह बुद्धि, अहंकार आदि परिणामात्मक है। निश्चय ही प्रधानमें बुद्ध्यादिपरिणाम नहीं बन सकते हैं। हम सिद्ध करेंगे कि प्रधान बुद्ध्यादिपरिणामरूप नहीं है, क्योंकि वह पृथिवी आदिके परिणामरूप है । जो बुद्ध्यादिपरिणामरूप है वह पृथिवी आदिके परिणामरूप नहीं देखा गया, जैसे पुरुष । और पृथिवी आदिके परिणामरूप प्रधान है, इस कारण वह बुद्ध्यादिपरिणामरूप नहीं है।
३००. शंका-पुरुषमें बुद्धयादिपरिणाम असिद्ध हैं और इसलिये वह वैधर्म्यदृष्टान्त नहीं हो सकता है ?
समाधान-नहीं; क्योंकि हम पुरुषके बुद्धयादि परिणाम निम्न अनुमानसे सिद्ध करते हैं:-पुरुष बद्धयादिपरिणात्मक है, क्योंकि वह चेतन है। जो बुद्ध्यादिपरिणामात्मक नहीं है वह चेतन नहीं देखा गया, जैसे.
1. स व 'च न'।
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