Book Title: Aptapariksha
Author(s): Vidyanandacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 454
________________ कारिका ११८] अर्हन्मोक्षमार्गनेतृत्व-सिद्धि ३४१ बैंकदेशत्वनिराकरणात् । “विशेषं धर्मिणं कृत्वा सामान्यं हेतु अवतो न दोषः" [ ] इति परैः स्वयमभिधानात् । 'प्रयत्नानन्तरोयकः 'शब्दः प्रयत्नानन्तरोयकत्वात्' इत्यादिवत् ।। ३१५. कः पुनरत्र विशेषो धर्मो ? मोक्षमार्ग इति ब्रूमः। कुतोऽस्य विशेषः ? स्वास्थ्यमार्गात् । न ह्यत्र मार्गसामान्यं धर्मि। किं तहि ? मोक्षविशेषणो मार्गविशेषः । कथमेवं मोक्षमार्गत्वं सामान्यम ? मोक्षमार्गानेक व्यक्तिनिष्ठत्वात् । क्वचिन्मानसशारीरव्याधिविशेषाणां मोक्षमार्गः3, क्वचिद्व्यभावसकलकर्मणाम्, इति मोक्षमार्गत्वं सामान्य में आप यह कैसे कहते हैं कि प्रकृतमें मोक्षमार्गमात्र-मोक्षमार्गसामान्यको धर्मी बनाया है ? समाधान-आपका कथन हमारे अनुकूल है, क्योंकि यदि साधनधर्म (सामान्य) धर्मीरूप नहीं है तो वह प्रतिज्ञार्थंकदेश नहीं हो सकता और उस दशामें प्रतिज्ञार्थंकदेशरूपसे हेतुको असिद्ध नहीं कहा जा सकता है। "विशेषको धर्मी बनाकर सामान्यको हेतु कहनेवालोंके कोई दोष नहीं है" [ ] ऐसा दूसरे दार्शनिकोंने भी कहा है। जैसे 'शब्द प्रयत्लका अविनाभावी है-प्रयत्नके बिना वह उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि प्रयत्नका अविनाभावी है' इस स्थलमें विशेष प्रयत्नका अविनाभावी-व्यक्तिको धर्मी और प्रयत्नका अविनाभावित्व (प्रयत्नानन्तरीयकत्व)-सामान्यको हेतु बनाया गया है। $ ३१५ शंका-अच्छा तो बतलाइये, यहाँ किस विशेषको धर्मी बनाया गया है ? समाधान-'मोक्षमार्ग' विशेषको । शंका-इसको विशेष कैसे कहा जाता है अर्थात् यह विशेष कैसे है ? समाधान-क्योंकि वह आत्मनिष्ठ मार्ग है। प्रकट है कि यहाँ (अनुमानमें) मार्गसामान्यको धर्मी नहीं किया। किसे क्या ? मोक्ष जिसका विशेषण है ऐसे मार्गविशेषको धर्मी किया है। तात्पर्य यह कि हमने उप 1.मु स प 'क्षणिकः' इत्यधिकः पाठः । 2. मु स प 'मोक्ष मार्गाणामनेक' । द 'मोक्षमार्गोऽनेक' । मूले स्वसंशोधितः पाठो निक्षिप्तः । 3. द 'मोक्षो रसायनमार्गः' । स 'मोक्षस्य मार्ग' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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