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कारिका ११८] अर्हन्मोक्षमार्गनेतृत्व-सिद्धि प्रतिज्ञार्थंकदेशस्यापि धर्मिणोऽसिद्धत्वानुपपत्तेः। किं तहि ? साध्यत्वेनै वासिद्धः, इति न प्रतिज्ञार्थंकदेशो नामासिद्धो हेतुरस्ति।
$३१६. विपक्षे बाधकप्रमाणाभावादन्यथानुपपन्नत्वनियमानिश्चयादगमको ऽयं हेतुः, इति चेत्, न; ज्ञानमात्रादौ विपक्षे मोक्षमार्गत्वस्य हेतोः प्रमाणबाधितत्वात् । सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकत्वे हि मोक्षमार्गस्य साध्ये ज्ञानमात्रादिविपक्षः, तत्र च न मोक्षमार्गत्वं सिद्धम्, बाधकसद्भावात् । तथा हि-ज्ञानमात्र हि न कर्ममहाव्याधिमोक्षमार्गः, श्रद्धानाचरणशून्यत्वात्, शारीरमानसव्याधिविमोक्षकारणरसायनज्ञानमात्र. वत् । नाप्यचरणमात्र तत्कारणम्, श्रद्धानज्ञानशून्यत्वात, रसायनाचरणमात्रवत् । नापि ज्ञानवैराग्ये तदुपायः, तत्त्वश्रद्धानविधुरत्वात्, रसायनवह साध्य है और साध्य असिद्ध होता है, इसलिये वह साध्यरूपसे ही असिद्ध (स्वरूपासिद्ध) है । अतः हमारा हेतु प्रतिज्ञार्थंकदेश नामका असिद्ध हेत्वाभास नहीं है।
$ ३१६. शंका-विपक्षमें बाधक प्रमाण न होनेसे हेतुमें अविनाभावरूप व्याप्तिका निश्चय नहीं है और इसलिये आपका यह हेतु अगमक हैसाध्यका साधक नहीं हो सकता है ?
समाधान-नहीं; क्योंकि विपक्षभत अकेले ज्ञानादिकमें 'मोक्षमार्गत्व' हेतु प्रमाणसे बाधित है-अर्थात् प्रत्यक्षादिसे यह सुप्रतीत है कि मोक्षमार्गपना अकेले ज्ञान, अकेले दर्शन और अकेले चारित्रमें, जो कि विपक्ष हैं, नहीं रहता है और इसलिये विपक्षबाधक प्रमाण विद्यमान ही है। प्रकट है कि मोक्षमार्गको सम्यग्दर्शनादि तीनरूप सिद्ध करने में अकेला ज्ञान आदि विपक्ष हैं और उनमें मोक्षमार्गत्व सिद्ध नहीं है, क्योंकि उसमें बाधक मौजूद हैं। वह इस तरहसे-अकेला ज्ञान कर्मरूप महाव्याधिका मोक्षमार्ग नहीं है क्योंकि वह श्रद्धान और आचरणशन्य है, जैसे शारीरिक और मानसिक व्याधिके छूटनेका कारणभूत रसायनज्ञानमात्र । न अकेला आचरण भी उसका कारण है क्योंकि वह श्रद्धान और ज्ञानशून्य है, जैसे रसायनका आचरणमात्र । तथा न केवल ज्ञान और वैराग्य उस( कर्ममहाव्याधिके मोक्ष )का उपाय है क्योंकि वे यथार्थ श्रद्धानरहित हैं, जैसे रसा
1.मु स प 'साध्यत्वेनासि' । 2. व 'नियमनिश्चयात् । सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकरहिते पदार्थगमकोऽयं । 3. मु स प 'हि' नास्ति ।
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