Book Title: Aptapariksha
Author(s): Vidyanandacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 459
________________ ३४६ [ कारिका १२० भगवतः " साक्षात्सर्वतत्त्वज्ञतामन्तरेण साक्षादबाधितमोक्षमार्गस्य प्रणयना नुपपत्तेरिति । आप्तपरोक्षा-स्वोपज्ञटीका [ विशेषणत्रयं व्याख्याय शेषपदं व्याख्याति ] 2 $ ३२०. 'वन्दे तद्गुणलब्धये' इत्येतद्व्याख्यातुमनाः प्राहवीत निःशेषदोषोऽतः प्रवन्द्योऽर्हन् गुणाम्बुधिः । तद्गुणप्राप्तये सद्भिरिति संक्षेपतोऽन्वयः ॥ १२०॥ $ ३२१. यतश्च यः साक्षान्मोक्षमार्गस्याबाधितस्य प्रणेता स एव विश्वतत्त्वानां ज्ञाता कर्मभूभृतां भेत्ताइत एवार्हन्तेव प्रवन्द्यो मुनीन्द्रैः, तस्य वीतनिशेषाज्ञानादिदोषत्वात्तस्यानन्तज्ञानादिगुणाम्बुधित्वाच्च । यो हि गुणाम्बुधिः स एव तद्गुणलब्धये सद्भिराचार्येवंन्दनीयः स्यात्, नान्य:, इति मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां सर्वज्ञ है, यह हम प्रतिपादन करते हैं, क्योंकि भगवान् के साक्षात् विश्वतत्वज्ञता के बिना साक्षात् निर्बाध मोक्षमार्गका प्रणयन नहीं बन सकता है । तात्पर्य यह कि भगवान् समस्त पदार्थोंके साक्षात् ज्ञानके बिना बाधारहित साक्षात् मोक्षमार्गका उपदेश नहीं दे सकते हैं । यथार्थतः साक्षात् सर्वज्ञ ही साक्षात् समीचीन मोक्षमार्गका प्रणेता सम्भव है, अन्य नहीं । $ ३२०. अब 'वन्दे तद्गुणलब्धये' इसका व्याख्यान करनेकी इच्छासे आचार्य कहते हैं 'अतः समस्त दोषरहित, गुणोंके समुद्र अरहन्त भगवान् उनके गुणोंकी प्राप्ति के लिये सत्पुरुषोंद्वारा प्रकृष्टरूपसे वन्दनीय हैं, इस प्रकार यह 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' इत्यादि पद्यका संक्षेपमें अन्वय - व्याख्यान है । $ ३२१. चूँकि जो बाधारहित साक्षात् मोक्षमार्गका प्रणेता है वही विश्वतत्त्वोंका ज्ञाता और कर्मपर्वतों का भेत्ता है, अतएव अरहन्त ही मुनीन्द्रों अथवा स्तोत्रकार आचार्य श्रीगृद्धपिच्छद्वारा प्रकर्षरूपसे वन्दना किये जाने योग्य हैं, क्योंकि वह समस्त अज्ञानादि दोषोंसे रहित है और अनन्तज्ञानादि गुणों का समुद्र है । निश्चय ही जो गुणोंका समुद्र है वह ही उन गुणोंकी प्राप्ति के लिये सज्जनों - आचार्योंद्वारा वन्दनीय होना चाहिए, 1. मु स प 'भगवद्भिः ' । 2. द 'मना' । 3. मुस 'र्हन्' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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