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कारिका ११८] अर्हन्मोक्षमार्गनेतृत्व-सिद्धि
३३९ साक्षान्मोक्षमार्गत्वात् । यस्तु न सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकः स न साक्षान्मोक्षमार्गः, यथा ज्ञानमात्रादि, साक्षान्मोक्षमार्गश्च विवादाध्यासितः, तस्मात्सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकः' इति । अत्र नाप्रसिद्धो धर्मी, मोक्षमार्गमात्रस्य सकलमोक्षवादिनामविवादास्पदस्य मित्वात्। तत एव नाप्रसिद्ध विशेष्यः पक्षः। नाप्यप्रसिद्ध विशेषणः, सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकत्वस्य व्याधिविमोक्षमार्गे: रसायनादौ प्रसिद्धत्वात् । न हि रसायनश्रद्धानमात्रं सम्यग्ज्ञानाचरणरहितं सकलामयविनाशनायालम् । नापि रसायनज्ञानमात्रं श्रद्धानाचरणरहितम् । न च रसायनाचरणमात्रं श्रद्धानज्ञानशून्यम् । तेषामन्यतमापाये सकलव्याधिविप्रमोक्षलक्षणस्य
( मोक्षका विशेषतः मार्ग ) तीनरूप हो जानना चाहिए, एक या दो रूप नहीं। वह इस प्रकारसे है-मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन आदि तीनरूप है, क्योंकि वह साक्षात् मोक्षमार्ग है, जो सम्यग्दर्शन आदि तीनरूप नहीं है वह साक्षात् मोक्षमार्ग नहीं है, जैसे अकेला ज्ञान आदि । और साक्षात् मोक्षमार्ग विचारकोटिमें स्थित मोक्षमार्ग है, इस कारण वह सम्यग्दर्शनादि तीनरूप है। यहाँ ( अनुमानमें ) धर्मी अप्रसिद्ध नहीं है क्योंकि मोक्षमार्गमात्रको धर्मी बनाया गया है और उसमें सभी मोक्षवादियोंको अविवाद है-मोक्षमार्गविशेष में ही उन्हें विवाद है ( क्योंकि कोई सिर्फ ज्ञानको, कोई केवल दर्शन-श्रद्धाविशेषको और कोई केवल चारित्रको मोक्षका मार्ग मानते हैं,
और इसलिए उसीमें मतभेद है। ) मोक्षमार्गसामान्यमें तो सब एक-मत हैं । अतएव पक्ष अप्रसिद्धविशेष्य नहीं है और न अप्रसिद्धविशेषण भी है, क्योंकि सम्यग्दर्शन आदिको तीनरूपता रोगके मोक्षमार्ग ( रोगके निवत्तिकारण ) रसायनादिक ( दवा आदि ) में प्रसिद्ध है। प्रकट है कि रसायनके सम्यग्ज्ञान और पथ्यापथ्यके आचरणरहित केवल रसायनका श्रद्धान ( विश्वास ) समस्त रोगोंको नाश करनेमें समर्थ नहीं है। न रसायनके श्रद्धान और आचरणरहित केवल उसका ज्ञान भी समर्थ है और न श्रद्धान-ज्ञानशून्य केवल रसायनका आचरण भी। कारण, उनमेंसे यदि एकका भो अभाव हो तो सम्पूर्ण रोगकी निवृत्तिरूप रसायनका फल प्राप्तनहीं हो सकता है। उसी प्रकार समस्त कर्मरूपी महाव्याधिका मोक्ष (छूटना ) भो यथार्थ श्रद्धान, यथार्थ ज्ञान और यथार्थ आचरण इन तीनरूप ही उपायसे निधि प्रसिद्ध होता है, उनमेंसे किसी एकका भी अभाव
1. मु स प 'मविवादस्य' । 2. म 'मोक्षमार्गरसा'।
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