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कारिका ११७] अर्हन्मोक्षमार्गनेतृत्व-सिद्धि
३३७ [ मोक्षमस्वीकुर्वतां नास्तिकानां प्रतिपादनं न मोक्षसद्भावबाधक मिति
प्रदर्शयति ] ६३०९. ननु च नास्तिकान्प्रति मोक्षस्वरूपेऽपि विवादः, इति चेत; न; तेषां प्रलापमात्रविकारात् । तदेवाह
नास्तिकानां च नैवास्ति प्रमाणं तन्निराकृतौ । प्रलापमात्रकं तेषां नावधेयं महात्मनाम् ॥ ११७ ॥
$३१०. येषां प्रत्यक्षमेकमेव प्रमाणं नास्तिकानां ते कथं मोक्षनिराकरणाय प्रमाणान्तरं वदेयुः ? स्वेष्टहानिप्रसङ्गात् । पराभ्युपगतेन प्रमाणेन मोक्षाभावमाचक्षाणा मोक्षसद्भावमेव किन्नाचक्षते न चे द्विक्षिप्तमनसः परपर्यनुयोगपरतया ? प्रलापमानं तु महात्मनां नावधेयम, तेषामुपेक्षाहत्वात् । ततो निर्विवाद एव मोक्षः प्रतिपत्तव्यः ।
से होता है और न निर्जरासे और इसलिये दोनों ( संवर और निर्जरा ) का तथा दोनोंसे मोक्षका भेद सिद्ध है ।
$ ३०९. शंका-नास्तिकोंके लिये मोक्षके स्वरूपमें भी विवाद है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि उनका वह केवल प्रलाप है। यहो आगे कहते हैं
'नास्तिकोंके मोक्षका निराकरण करने में कोई प्रमाण नहीं है और इसलिये उनका वह कहना प्रलापमात्र ( केवल वकना अथवा रोना) है. अतः वह महात्माओं द्वारा ध्यान देने योग्य नहीं है।'
३१०. जिन नास्तिकोंके एक प्रत्यक्ष ही प्रमाण है वे मोक्षका निराकरण करनेके लिये अन्य प्रमाण कैसे मान सकते हैं ? अन्यथा अपने इष्टकी हानिका प्रसंग आवेगा। यदि वे दूसरोंके माने प्रमाणद्वारा मोक्षका अभाव बतलायें तो वे यदि विक्षिप्तचित्त नहीं हैं तो दूसरोंके प्रश्न करनेपर मोक्षका सद्भाव ही क्यों नहीं बतलाते ? तात्पर्य यह कि नास्तिकोंके द्वारा केवल एक प्रत्यक्षप्रमाण माना जाता है और वह सद्भावका हो साधक है। इसलिये वे उसके द्वारा मोक्षका निषेध नहीं कर सकते हैं।
1. मुप स 'अत्रानधिकारात्' । 2: मु 'प्रत्यक्षमेव ।
3. द 'एतद्विक्षिप्तमनसः' ।
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