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कारिका ३६ ]
ईश्वर - परीक्षा
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तान्येव तन्वादिकार्याणि कुर्वन्ति । योऽसौ तेषामधिष्ठाता स महेश्वरः पुरुषविशेषः क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः समस्तकारकशक्तिपरिज्ञानभाक् सिसृक्षाप्रयत्न विशेषवांश्च प्रभुविभाव्यते, तद्विपरीतस्य समस्तकारकाधिष्ठातृत्वविरोधात् । बहूनामपि समस्तकारकाधिष्ठायिनां पुरुषविशेषाणां प्रतिनियतज्ञानादिशक्तीनामेकेन महाप्रभुणाऽधिष्ठितानामेव प्रवृत्तिघटनात् सामन्त महासामन्तमण्डलिका 'दीनामेकचक्रवर्त्यधिष्ठितानां प्रवृत्तिवदिति महेश्वरसिद्धिः । तत्राचेतनत्वादिति हेतोर्वरस विवृद्धिनिमित्तं प्रवर्त्तमानेन 'गोक्षीरेणानैकान्तिकत्वमिति न शङ्कनीयम्, तस्यापि चेतनेन वत्सेनादृष्टविशेष सहकारिणाधिष्ठितस्यैव प्रवृत्तेः । अन्यथा मृते वत्से गोभक्तेनैव तस्य प्रवृत्तिविरोधात् । न च वत्सादृष्टकारण हैं । इस कारण चेतनद्वारा अधिष्ठित होकर ही वे शरोरादिक कार्यों को करते हैं ।' जो उनका अधिष्ठाता है - संचालक है वह महेश्वर है, जो क्लेश, कर्म, विपाक, आशय इनसे रहित पुरुषविशेषरूप है, समस्त कारकों की शक्तिका परिज्ञाता है, विशिष्ट इच्छा तथा प्रयत्नवाला है और जिसे प्रभु कहा जाता है । इससे जो विपरीत है वह समस्त कारकोंका अधिष्ठाता नहीं बन सकता है । यदि समस्त कारकोंके अधिष्ठाता बहुत पुरुष विशेष हों तो उनकी ज्ञानादि शक्तियाँ ( ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति और प्रयत्नशक्ति ये तीनों ) सीमित होनेके कारण वे भी एक महाप्रभुसे अधिष्ठित होकर हो प्रवृत्त होंगे । जैसे, सामन्त, महासामन्त, माण्डलिक आदि राजे महराजे एक चक्रवर्ती - सम्राटसे अधिष्ठित होकर अपनी प्रवृत्ति करते हैं । इस प्रकार महेश्वरकी सिद्धि हो जाती है । यदि यहाँ कोई शङ्का करे कि इस अनुमान में जो ' अचेतनत्व' हेतु दिया गया है वह गाय के बच्चेकी वृद्धि ( पुष्टि-पोषण ) के लिये प्रवृत्त हुए गोदुग्ध के साथ अनैकान्तिक है, क्योंकि गोदुग्ध अचेतन है, पर चेतनसे अधिष्ठित होकर प्रवृत्त नहीं होता, तो ऐसी शङ्का करनी योग्य नहीं है, क्योंकि वह ( गोदुग्ध ) भो चेतन अदृष्टविशेषसे युक्त गायके बच्चेसे अधिष्ठित होकर ही प्रवृत्त होता है । अन्यथा - यदि गोदुग्ध अदृष्टविशेषसे युक्त चेतन गायके बच्चे से अधिष्ठित होकर प्रवृत्त न हो - उससे अनधिष्ठित प्रवृत्त हो तो - बच्चे के मर जानेपर गायके सेवकद्वारा ही (अधिष्ठित होकर ) उसकी प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिये, किन्तु यह सभीके अनुभवसिद्ध है कि बच्चे के मर जाने -
1. मु प स 'लीका' ।
2. द ' क्षीरेणा - ' । 3. द 'वत्सादृ' ।
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