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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ५२ $ १४४. तदेवमयुतसिद्धरसम्भवे 'सत्यामयुतसिद्धौ' इति विशेषणं तावदसिद्धम्, विपक्षादसमवायात्संयोगादेर्व्यवच्छेदं न साधयेत्, संयोगादिना व्यभिचारस्याबाधितेहेदंप्रत्ययस्य हेतोदु परिहारत्वात् । केवलमभ्युपगम्यायुतसिद्धत्वं विशेषणं हेतोरनैकान्तिकत्वमुच्यते । सिद्धेऽपि विशेषणे साधनस्येह समवायिषु समवाय इत्ययतसिद्धा'बाधितेहेदंप्रत्ययेन साधनमेतद् व्यभिचारि कथ्यते। न ह्ययमयुतसिद्धा बाधितेहेदंप्रत्ययः समवायहेतुकः, इति। ६१४५. नन्वबाधितत्वविशेषणमसिद्धिमिति परमतमाङ्कयाह
समवायान्तरावृत्तौ समवायस्य तत्त्वतः । समवायिषु, तस्यापि परस्मादित्यनिष्ठितिः ॥५२॥
६ १४४. इस तरह अयुतसिद्धिके सिद्ध न होनेपर "सत्यामयुतसिद्धौ' इत्यादि वाक्यद्वारा हेतुमें दिया गया 'अयुतसिद्धत्व' विशेषण निश्चय ही असिद्ध हो जाता है और इसलिये वह हेतुकी विपक्ष-असमवायरूप संयोगादिकसे आवृत्ति नहीं करा सकता है। अतः अबाधित 'इहेदं' प्रत्ययरूप हेतुका संयोगादिकके साथ व्यभिचार अपरिहार्य है-वह निवारण नहीं किया जा सकता है। अब केवल 'अयुतसिद्धत्व' विशेषणको मानकर हेतुके अनैकान्तिकता बतलाते हैं कि किसी प्रकार 'अयुतसिद्धत्व' विशेषण सिद्ध हो भी जाय तो भी हेतु 'इन समवायिओंमें समवाय है' इस अयुतसिद्ध और अबाधित 'इहेदं' प्रत्ययके साथ व्यभिचारी है। प्रकट है कि यह अबाधित 'इहेदं' प्रत्यय समवायहेतुक नहीं है किन्तु अन्य सम्बन्धहेतुक है।
१४५. वैशेषिक-'इन समवायिओंमें समवाय है' यह प्रत्यय अबाधित नहीं है-बाधित है। अतः उक्त प्रत्ययमें 'अबाधितत्व' विशेषण असिद्ध है ? वह इस प्रकारसे है
'यदि समवायिओंमें समवायकी अन्य समवायसे वृत्ति मानी जाय तो उसकी भी अन्य समवायसे वृत्ति मानी जायगी और इस तरह अनवस्था उक्त प्रत्ययमें बाधक है। अतः 'अबाधितत्व' विशेषण नहीं है, जिससे कि इस प्रत्ययके साथ हेतु व्यभिचारी होता।'
1. मु 'द्धबाधि' । 2. म 'द्धबाधि'। 3. द स 'नत्वबा'। 4. स 'ष्टितिः'।
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