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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका
तस्या
तस्मिन्बोधमयप्रकाशविशदे मोहान्धकारापहे - येऽन्तर्यामिनि पुरुषे प्रतिहताः संशेरते ते हताः ॥" [ ] इति । $ २४२. तदेतदपि न पुरुषाद्वै तव्यवस्थापनपरमाभासते, 'न्तर्यामिनः पुरुषस्य बोधमयप्रकाशविशदस्यैव बोध्यमयप्रकाश्यस्यासम्भवानुपपत्तेः । यदि पुनः सर्व बोध्यं बोधमयमेव प्रकाशमानत्वात्, बोधस्वात्मवदिति मन्यते, तदा बोधस्यापि बोध्यमयत्वापत्तिरिति पुरुषाद्वैतमिच्छतो बोध्याद्वैतसिद्धिः । बोधाभावे कथं बोध्यसिद्धिरिति चेत्, बोध्याभावेऽपि बोधसिद्धिः कथम् ? बोध्यनान्तरीयकत्वाद्बोधस्य । स्वप्नेन्द्रजालादिषु बोध्याभावेऽपि बोधसिद्धेर्न बोध्यनान्तरीयको बोध इति चेत्, न, तत्रापि बोध्यसामान्यसद्भाव एव बोधोपपत्तेः । न हि संशयस्वप्नादिबोधोऽपि बोध्यसामान्यं व्यभिचरति, बोध्यविशेषेष्वेव तस्य
[ कारिका ८६
एवं प्रकाशपु परमपुरुष है क्योंकि प्रसिद्ध अंशुमालीदेव - सूर्य परमपुरुष - के होनेपर हो लोकों को प्रकाशित करता है और उसके न होनेपर वह स्वयं प्रकाशित नहीं करता है । अतः जो व्यक्ति ऐसे उस ज्ञानमय प्रकाशसे निर्मल, मोहान्धकारसे रहित, अन्तर्यामी परमपुरुष में सन्दिग्ध होते हैं वे नाशको प्राप्त होते हैं ।" [
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$ २४२. जैन - आपका यह कथन भी पुरुषाद्वैतका व्यवस्थापक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि ज्ञानमय प्रकाशसे निर्मल, सर्वज्ञ, परमपुरुष ही ज्ञेयमय प्रकाश्य सम्भव नहीं है - ज्ञानरूप प्रकाशसे प्रकाशित होनेवाला ज्ञेय - रूप प्रकाश्य भिन्न ही होता है और इसलिये केवल अद्वैत परमपुरुष सिद्ध नहीं होता, प्रकाश और प्रकाश्य ये दो सिद्ध होते हैं ।
वेदान्ती - समस्त बोध्य ( ज्ञेय ) को हम ज्ञानरूप ही मानते हैं क्योंकि वह प्रकाशमान है, जैसे ज्ञानका अपना स्वरूप ?
जैन - तो ज्ञान भी ज्ञयरूप प्राप्त होगा और उस हालत में पुरुषाद्वैतको चाहनेवाले आपके यहाँ ज्ञेयाद्वैत सिद्ध हो जायगा ।
वेदान्ती - ज्ञान के अभान में ज्ञ ेय कैसे सिद्ध हो सकता है ?
जैन - ज्ञ के अभाव में भी ज्ञान कैसे सिद्ध हो सकता है ? क्योंकि • ज्ञान ज्ञेयका अविनाभावी है- उसके बिना नहीं हो सकता है ।
वेदान्ती - स्वप्न, इन्द्रजाल आदिमें ज्ञेयके बिना भो ज्ञान देखा जाता है | अतः ज्ञानज्ञयका अविनाभावी नहीं है ।
जैन - नहीं, वहाँ भी ज्ञयसामान्यके सद्भावमें ही ज्ञान होता है ।
1. मु 'तदपि ।
2. द 'वे' ।
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