________________
कारिका ९५-९६ ] अर्हत्सर्वज्ञ-सिद्धि
२८३. यन्नार्हतः समक्षं तन्न प्रमेयं बहिर्गतः। मिथ्यैकान्तो यथेत्येवं व्यतिरेकोऽपि निश्चितः ॥९५।।
२६०. मिथ्यकान्तज्ञानानि हि निःशेषाण्यपि परमागमानुमानाभ्यामस्मदादीनां प्रमेयाणि च प्रत्यक्षाणि चाहत् इति न विपक्षतां भजन्ते तद्विषयास्तु परैरभिनन्यमानाः सर्वथैकान्ता निरन्वयक्षणिकत्वादयो नाहत्प्रत्यक्षा इति ते विपक्षा एव। न च ते कुतश्चित्प्रमाणात्प्रमोयन्त इति न प्रमेयाः तेषामसत्त्वात् । ततो ये नाहंतः प्रत्यक्षास्ते न प्रमेयाः, यथा सर्वथैकान्तज्ञानविषया इति साध्यव्यावृत्तौ साधनव्यावृत्तिनिश्चयान्निश्चितव्यतिरेकं प्रमेयत्वं साधनं निश्चितान्वयं च समर्थितम्। ततो भवत्येव साध्यसिद्धिरित्याह -
सुनिश्चितान्वयाद्धेतोः प्रसिद्धव्यतिरेकतः। ज्ञातार्हन विश्वतत्त्वानामेवं सिद्ध्येदबाधितः॥९६॥
जो अर्हन्तके प्रत्यक्ष नहीं है वह प्रमेय नहीं है, जैसे प्रत्यक्षबहिभूत मिथ्या एकान्त, इस प्रकार व्यतिरेक भो निश्चित है अर्थात् प्रमेयपना हेतु सन्दिग्धव्यतिरेक नहीं है।'
२६०. प्रकट है कि जो मिथ्या एकान्तज्ञान हैं वे सभी परमागम और अनुमानसे हम लोगोंके प्रमेय हैं और अर्हन्तके प्रत्यक्ष हैं अतः वे विपक्ष नहीं हैं। किन्तु उन ज्ञानोंके विषयभूत एकान्तवादियोंद्वारा स्वीकृत निरन्वयक्षणिकता आदि सर्वथा एकान्त अर्हन्तके प्रत्यक्ष नहीं हैं और इस लिये वे विपक्ष हैं। वे किसी प्रमाणसे प्रमित नहीं होते, अतएव वे प्रमेय नहीं हैं, क्योंकि उनका अभाव है-उनकी सत्ता हो नहीं है। अतः 'जो अर्हन्तके प्रत्यक्ष नहीं हैं वे प्रमेय नहीं हैं, जैसे सर्वथा एकान्तज्ञानके विषय' इस प्रकार साध्यके अभावमें साधनके अभावका निश्चय अर्थात् व्यतिरेकका निर्णय होनेसे प्रमेयपना हेतु निश्चितव्यतिरेक है और निश्चितअन्वय पहलेसे ही सिद्ध है। अतः अन्वय-व्यतिरेकविशिष्ट इस हेतुसे साध्यकी सिद्धि अवश्य होती है, इसी बात को आगे अन्य कारिकाद्वारा पुष्ट करते हैं
'प्रमेयपना हेतुका अन्वय अच्छी तरह निश्चित है और व्यतिरेक भी उसका प्रसिद्ध है। अतः उससे निर्बाधरूपसे अर्हन्त समस्त पदार्थोंका ज्ञाता सिद्ध होता है।'
1. प्रतौ 'च' नास्ति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org