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आप्तपरीक्षा - स्वोपज्ञटीका
नानुमानोपमानार्थापत्याऽऽगमबलादपि । विश्वज्ञाभावसंसिद्धिस्तेषां सद्विषयत्वतः ॥ ९८ ॥ नार्हन्निःशेषतत्त्वज्ञो वक्तृत्व- पुरुषत्वतः ।
ब्रह्मादिवदिति प्रोक्तमनुमानं न बाधकम् ॥ ९९ ॥ हेतोरस्य विपक्षेण विरोधाभावनिश्चयात् । वक्तृत्वादेः प्रकर्षेऽपि ज्ञानानिर्ह्रास सिद्धितः ॥१००॥ नोपमानमशेषाणां
नृणामनुपलम्भतः ।
उपमानोपमेयानां तद्बाधकमसम्भवात् ॥ १०१ ॥ नार्थापत्तिरसर्वज्ञं जगत्साधयितुं क्षमा ।
क्षीणत्वादन्यथाभावाभावात्तत्तदबाधिका ॥ १०२ ॥
है, इसलिये निश्चय ही वह सर्वज्ञका बाधक नहीं है । तात्पर्य यह कि जो प्रत्यक्ष तीनों कालों और तीनों लोकोंको जानता है वही यह कह सकता है कि तीनों कालों और तोनों लोकों में सर्वज्ञ नहीं है । पर प्रत्यक्ष वैसा नहीं जानता है, अन्यथा वही सर्वज्ञ हो जायगा । इसतरह प्रत्यक्ष दोनों ही हालतों में सर्वज्ञका बाधक नहीं है ।'
[ कारिका ९८- २
'अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति और आगम इन प्रमाणोंसे भी सर्वज्ञका अभाव सिद्ध नहीं होता, क्योंकि वे सब सत्ताको ही विषय करते हैंअसत्ताको नहीं, इसलिये ये प्रमाण भी सर्वज्ञके बाधक नहीं हैं ।' 'अर्हन्त अशेष तत्त्वोंका ज्ञाता नहीं है, पुरुष है । जो वक्ता है और पुरुष है वह अशेष तत्त्वोंका ज्ञाता नहीं है, जैसे ब्रह्मा वगैरह ' यह आपके द्वारा कहा गया अनुमान सर्वज्ञका बाधक नहीं है ।'
क्योंकि वह वक्ता है और
'क्योंकि वक्तापन और पुरुषपन हेतुओंका विपक्ष ( सर्वज्ञता ) के साथ विरोधका अभाव निश्चित है - अर्थात् उक्त हेतु विपक्षमें रहते हैं और इसलिये वे अनैकान्तिक हैं । कारण, वक्तापन आदिका प्रकर्ष होनेपर भी ज्ञानकी हानि नहीं होती ।'
'उपमान भी सर्वज्ञका बाधक नहीं है, क्योंकि अशेष उपमान और उपमेयभूत मनुष्योंकी उपलब्धि नहीं होती । करण, वह असम्भव हैसम्भव नहीं है ।'
1. द 'प्रकर्षोऽपि ' ।
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