Book Title: Aptapariksha
Author(s): Vidyanandacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 415
________________ ३०२ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ११० साधयेदिति वक्तृत्वविशेषो विरुद्धो हेतुः साध्यविपरीतसाधनात् । $ २७६. तथा पुरुषत्वमपि सामान्यतः सर्वज्ञाभावसाधनायोपादीयमानं सन्दिग्धविपक्षव्यावृत्तिकमेव साध्यं न साधयेत्, विपक्षण विरोधासिद्धेः, पुरुषश्च स्यात्कश्चित् सर्वज्ञश्चेति । न हि ज्ञानातिशयेन पुरुषत्त्वं विरुद्धयते, कस्यचित्सातिशयज्ञानस्य महापुरुषत्वसिद्धेः। पुरुषत्वविशेषो हेतुश्चेत्, स यद्यज्ञानादिदोषदूषितपुरुषत्वमुच्यते, तदा हेतुरसिद्धः, परमेष्ठिनि तथाविधपुरुषत्वासम्भवात् । अथ निर्दोषपुरुषत्वविशेषो हेतुः, तदा विरुद्धः साध्यविपर्ययसाधनात् । सकलाज्ञानादिदोषविकलपुरुषत्वं हि परमात्मनि सिद्धचत् सकलज्ञानादिगुणप्रकर्षपर्यन्तगमनमेव साधयेत्, तस्य तेन व्याप्तत्वादिति नानुमानं सर्वज्ञस्य बाधकं बुद्धयामहे । [ उपमानस्य सर्वज्ञाबाधकत्वकथनम् ] २७७. नाप्युपमानम्, तस्योपमानोपमेयग्रहणपूर्वकत्वात् । प्रसिद्ध भास है, क्योंकि वह साध्य ---असर्वज्ञतासे विपरीत-सर्वज्ञताको सिद्ध करता है। ६२७६. तथा पुरुषपना भी यदि सामान्यसे सर्वज्ञका अभाव सिद्ध करनेके लिये कहा जाय तो वह भी सन्दिग्धविपक्षव्यावृत्तिक हेतु है और इसलिये वह साध्य (असर्वज्ञता ) को सिद्ध नहीं कर सकता, क्योंकि उसका विपक्षके साथ रहने में विरोध नहीं है, कोई पुरुष भी हो और सर्वज्ञ भी हो, दोनों बन सकता है। प्रकट है कि सातिशय ज्ञानके साथ पुरुषपनाका विरोध नहीं है, कोई सातिशय ज्ञानी महापुरुष प्रसिद्ध है। यदि पुरुषपनाविशेष हेतु हो तो वह यदि अज्ञानादिदोष दूषित पुरुषपनारूप कहें तो हेतु असिद्ध है, क्योंकि परमेष्ठी ( सर्वज्ञ )में उस प्रकारका पुरुषपना सम्भव नहीं है । अगर निर्दोष पुरुषपनाविशेष हेतु हो तो वह विरुद्ध हेत्वाभास है, क्योंकि वह साध्य-असर्वज्ञतासे विपरीत-सर्वज्ञताको सिद्ध करता है । स्पष्ट है कि समस्त अज्ञानादि दोषरहित पुरुषपना पर. मात्मा ( सर्वज्ञ ) में सिद्ध होता हुआ समस्त ज्ञानादि गुणोंके परमप्रकर्षकी प्राप्तिको सिद्ध करेगा, क्योंकि वह उसके साथ व्याप्त है। इस प्रकार उक्त अनुमान सर्वज्ञका बाधक नहीं है। $ २७७. उपमान भी सर्वज्ञका बाधक नहीं है, क्योंकि उपमानप्रमाण उपमानभूत और उपमेयभूत पदार्थों के ग्रहणपूर्वक होता है। प्रकट है कि 1. म प स तत्पुरुषत्वं'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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