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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटोका [कारक। ८९, ९० विपक्षेऽपि' वृत्तेरनैकान्तिकत्वमित्याशङ्कायामिदमाह
[हेतोरनेकान्तिकत्वं परिहरति ] हेतोर्न व्यभिचारोऽत्र दूरार्थर्मन्दरादिभिः ।
सूक्ष्मैर्वा परमाण्वायैस्तेषां पक्षीकृतत्वतः ।। ८९ ॥ $ २४९. न हि कानिचिद्देशान्तरितानि स्वाभावान्तरितानि कालान्तरितानि वा तत्वानि पक्षबहिर्भूतानि सन्ति, यतस्तत्र वर्तमानः प्रमेयत्वादिति हेतुर्व्यभिचारी स्यात्, तादृशां सर्वेषां पक्षीकरणात् । तथा हि
तत्त्वान्यन्तरितानीह देश-काल-स्वभावतः । धर्मादीनि हि साध्यन्ते प्रत्यक्षाणि जिनेशिनः ॥९॥
$२५०. यथैव हि धर्माधर्मतत्त्वानि कानिचिद्देशान्तरितानि देशान्तरितपुरुषाश्रयत्त्वात् , कानिचित्कालान्तरितानि कालान्तरितप्राणिगणाधिकरणत्त्वात्, कानिचित्स्वभावान्तरितानि देशकालाव्यवहितानामपि तेषां स्वभावतोऽतीन्द्रियत्वात् । तथा हिमवन्मन्दरमकराकरादीन्यपि
समाधान -इस शंकाका उत्तर निम्न कारिकाद्वारा कहते हैं
'मेरु आदि दूरवर्ती पदार्थोके साथ अथवा परमाणु आदि सूक्ष्म पदार्थोंके साथ हेतु अनैकान्तिक नहीं है। क्योंकि उन्हें भी यहाँ पक्ष बनाया है।'
$२४९. प्रकट है कि कोई देशव्यवहित, स्वभावव्यवहित या कालव्यवहित पदार्थ पक्षसे बाहर नहीं हैं, जिससे वहाँ प्रवृत्त होता हुआ प्रमेयत्व हेतु अनैकान्तिक होता; क्योंकि उन जैसे सभी पदार्थोंको पक्ष बनाया गया है । यही अगली कारिकामें कहते हैं_ 'इस अनुमानमें देश, काल और स्वभावसे अन्तरित धर्मादिक पदार्थ जिनेन्द्रके प्रत्यक्ष सिद्ध किये जाते हैं।'
$ २५०. स्पष्ट है कि जिस प्रकार कोई धर्म और अधर्म आदि तत्त्व देशसे अन्तरित हैं, क्योंकि देशसे अन्तरित पुरुषोंमें वे रहनेवाले हैं। कोई कालसे अन्तरित हैं, क्योंकि कालसे अन्तरित प्राणियोंमें रहनेवाले हैं और कोई स्वभावसे अन्तरित हैं, क्योंकि देश और कालसे अव्यवहित (समीप) होते हुए भी वे स्वभावसे अतीन्द्रिय (इन्द्रियागोचर) हैं। उसी प्रकार
1. मु “विपक्षवृत्तेः', स 'विपक्षेऽपि प्रवृत्तेः' । 2. मु 'स्वभावान्तरितानि' नास्ति । 3. द 'पुरुषाप्रत्यक्षत्वात्' ।
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